किसी और से नही है खुद से है आज मेरी लड़ाई,
अपने ही अस्तित्व को क्यो मैं समझ नही पाई।
हर रीत निभा रही हूं, हर नाता निभा रही हूं,
सब कुछ सवार कर मैं सजावट का सामान बनती जा रही हूं।
यू तो जीवन की परीक्षा बड़ी कड़ी है,
अपनो के बीच मेरी परछाई अजनबी सी पड़ी हैं।
हर सांस में घुटन है हर और एक जलन है,
बद से बेहतर होने का ये अंधा सा चलन है।
क्षण क्षण क्यो मैं ऐसे क्षीण हो रही हूं,
सक्षम हु अगर तो अपने लिए क्यो रो रही हूं।
जया ज्योति नायडू रॉय.....जयूनीर
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