रम्य और सौम्य से निखरे प्रभा रूपी भाल से,
सागर मध्य खिलते कमल नयनों के जाल से,
कण्ठ पर पड़ी सुंदरी अमृत लताएं
दामनी धीरे से जिसके नूपुर बजाए,
हाथो में खड्ग शंख त्रिशूल शोभा पाए,
अवर्णनीय रूप जो शब्दो मे न समाए,
मन्द मोहनी मंथर सी अलस मुस्कान से,
श्वेत श्यामल अंगों सजे हर अलंकार से,
वो दिव्य दर्शनी देवी कन्या में समाये,
त्रिभुवन देवता भी जिनके गुणगान गाये,
नाद से झंकृत वो मधुर तार है,
प्रणवाक्षर का वो ही आधार है,
कोटि कोटि लोको में है पूजिता,
शरण जिसके मानव और देवता,
प्राकृति का वो अप्रतिम रूप है,
व्याप्त चहु दिशा में स्वरूप है,
अरण्य से नीले आकाश तक,
निस्तब्ध में भी फैले प्रकाश तक,
आगम से हर कण में उल्लास है,
हर ओर जयकार का उद्भाष है,
आओ सभी मिल कर स्तुति गाये,
श्री चरणों मे उसके मस्तक झुकाये।
जया ज्योति नायडू रॉय ....जयूनीर
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