Jay Verma   (जयवी...)
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Joined 20 November 2019


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21 MAY 2022 AT 23:51

उनके जिस्म को जो मुह लगाकर आया हूँ मैं,
बेहया मैं, रस्ते में ही ठोकर खाकर आया हूँ मैं।

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4 APR 2022 AT 21:56

तुम भी आ ही जाओ बाकी ज़ख्मों
क्यों मेरी ख़ुशी का इंतज़ार करते हो?

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3 APR 2022 AT 0:46

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27 MAR 2022 AT 1:37

चाहते तो तुझे बेवफ़ा ही लिखते अपने शब्दों में,
शुकराना करो कि बस, हमने चाहा नहीं।

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26 MAR 2022 AT 3:04

कभी न देखा मैंने, फिर उसका चेहरा।

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20 MAR 2022 AT 23:44

थी उठाई क़लम हमने, तेरे ही सहारे,
अब गुनाह सा लगता है लिखना, तेरे ही बारे।

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19 MAR 2022 AT 0:35

एक अलग ही रंग होता,
ग़र जो तुम होते साथ।

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19 MAR 2022 AT 0:34

एक अलग ही रंग होता,
ग़र जो तुम होते साथ।

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13 MAR 2022 AT 23:36

कविता नहीं क़िताब लिख दूँ तुम पे,
इतनी ख़ूबसूरत हो तुम...

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16 FEB 2022 AT 22:09

ग़र न होतीं ज़िमेदारियाँ सर पे,
तो हम भी होते पहाड़ों में सब त्याग कर
और लिख रहे होते किस्से किताबों में।— % &

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