Jay Singh Rajput   ('ठाकुर')
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Joined 19 January 2018


Joined 19 January 2018
2 SEP 2022 AT 9:48

सब टुकड़ों को समेटने वाला
कभी खुद भी तो टूटा होगा,

हसी-ठिठोली करने वाला
कभी वो भी तो रोया होगा,

वक्त से माना अनबन है अभी थोड़ी,
सब्र कर ज़िंदगी
कल वक्त भी मुठ्ठी में होगा ।।

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27 FEB 2022 AT 13:05

नासमझ और फरेबी दुनिया में वो दिल्लगी कर बैठे
अपनी मासूम सी जिंदगी को जहन्नुम कर बैठे

बुतों से जो इश्क करते तो अलग बात थी
ये बदकिस्मती उनकी ,की वो हम ही से कर बैठे

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30 OCT 2021 AT 15:16

बातों का सलीका और इश्क का हुनर
काश हम इनसे अंजान न होते

गर होता वास्ता इनसे हमारा
तो तेरी आंखो से निकले मोती आज खारे न होते

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25 OCT 2021 AT 16:01

वो कहते हैं हमें हमारा किरदार संवारने को
समंदर को एक दरिया में मिल जाने को

चलो एक बार लहरों को भी काफिर कर देते है
इसमें हर्ज ही क्या है उनके लिए मुन्तशिर हो जाने को

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19 OCT 2021 AT 19:30

रोज जिंदगी सुलझाने की जद्दोजहद करते है
सुकून का लम्हा पाने को

हर सुबह घर से निकलते है मतलब की इस दुनिया में
एक शाम घर आने को

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27 FEB 2021 AT 9:24

हर रात समेट कर सोते है खुदको
अगले दिन फिर नए सिरे से बिखरने के लिए।।

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11 OCT 2020 AT 10:03

सुरखाब सा जिस्म उस पर मिजाज़ इत्र सा
बर्क सा चेहरा जिस पर नूर आफताब सा,

लगता है इतनी नवाजिशें भी कम थी मेरे यार को
इसलिए उसके होंठो का तिल भी कहर बरपा रहा,
जैसे किसी क़यामत की रात सा

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10 OCT 2020 AT 7:49

अक्सर शांत, तो कभी सैलाब हूं मैं
पीर को स्याही करता,कलाकार हूं मैं

देखो तो सरल, झांको तो किसी अघोरी की जटा हूं
ज़िन्दगी की किताब में कहानी बदलने वाला अध्याय हूं मैं,

पर हैसियत की डोर से खुद को ही बांधता हूं
लोगों से छिपकर, अन्दर एक बच्चे को भी पालता हूं,

घुप अंधेरे में जुग्नुओं का यार हूं मैं
अक्सर शांत, तो कभी सैलाब हूं मैं।।

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5 OCT 2020 AT 19:21

तुमने जो बही खाता बनाया है मेरी नादानियों का
उसमें एक और लिखो और चलो हिसाब कर दो

बामुश्किल गुज़रा है आज का दिन हमारा,

बैठो तुम्हारे रुखसार की रंगत वाली चाय बनाते है,
मुंसिफ! चुस्की लो और सजा सुना दो

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10 SEP 2020 AT 23:35

धूल जमने लगी थी जिस कागज़ पर
उसे फिर से साफ करने लगे है हम,

लबालब भरे थे जो बेतरतीब जज़्बात,
उन्हें अब सलीके से अल्फ़ाज़ करने लगे है हम

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