सूरत क्या चीज़ है जनाब,
नज़रे बता देती है सीरत कैसी है...-
बहुत इंतज़ार किया तेरा उसी राह पर जहाँ मिलने का वादा किया था, जिंदगी बीत गयी मेरी पर तू ना आई...
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सच को सपना मान के जिया है मैंने, और जानती हो! इस सपने का हिस्सा भी तुम्ही हो...
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तुझे मिलने की ख्वाहिश में सब को अपना मान बैठा हूँ, कभी इधर भी तो देख, तेरे लिए अपनी जान हथेली पे लिए बैठा हूँ ...
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बारिश में भीग ते हुए आसमान में देखना, तुम्हारे पास होने का एहसास दिलाता है ...
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जब नींद खुली आंखों मे एक अजीब सी चमक थी, नमी थी, शायद घर से काफी दूर था इसीलिए थोड़ी फ़िक्र थी,
सब किस हाल मे होंगे क्या कर रहे होंगे ये कुछ सवाल मेरे मन में समाए थे... बस घर जाने की जल्दी थी,
आंखें बेचैन थी मन परेशान था...एक फ़र्ज़ था, माँ पापा के सपने थे जो साकार करने आया था,
अब चल पड़ा हूँ काफी दूर पीछे ना मुड़ के देखूंगा बस जब मंजिल हाथ लगेगी तभी घर लौटूंगा ...-
कैद कर लूं उन लम्हों को जिसके साथ ज़िदंगी गुज़ारी जाए, क्या पता शायद वो लम्हें वापस ना आए और लोग रुकसत हो जाए...
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