दिमाग दिल फेफड़े गुर्दे ही नही आह ओ फुंगा
सबमें तूफान सा मचलता है आज कह दूं क्या— % &-
पुरसुकूँ नींद का तसव्वुर नही है आंखों में
नींद आती है तो बदख्वाबियां ले आती हैं-
दोस्तों से दुआ का हूं तलबगार
कई रोज़ से सख़्त हूं मैं बीमार
मेरी सेहत के लिए दुआ कीजिएगा।-
शर्तों के साथ होना सिकंदर नही कुबूल
गैर मशरुत फकीरी में मौज है अपनी-
तेरे हाथ में पत्थर मेरे माथे जख्म
कोई रिश्ता तो है दरमियां इनके-
ग़ज़ल कहने को कई काफिये बदले उसने
बड़ी मुश्किल से वो दिल की बात कह पाया-
सलीका आता है जिन्हें गुफ्तगू का
उन्हें रगबत है बहुत खामोशियों से-
धीरे धीरे ही सही ये अब्र छटेगा एक दिन
तेरे जुल्मों का खाता भी खुलेगा एक दिन
अभी तो जख्म हरे हैं ये लहु-जदा भी हैं
घड़ा ये पापों का तेरा भी भरेगा एक दिन-
लहजे में छुपी होती है इंसान की गरज़
जरिया ए गुफ्तगू हैं अल्फाज़ तो फकत
لہجے میں چھپی ہوتی ہے انسان کی غرض
ذریعہ گفتگو ہیں الفاظ تو فقط-
ज़िंदगी में कभी ऐसा भी मकाम आता है
जहां ख़ुद को भी अपनी खबर नहीं होती
ज़ुबान ए दिल में लिखे दर्द पढ़े जाते हैं
वहां पे कसरत ए जेर ओ ज़बर नही होती-