Jaवेद ©   (अज्ञात)
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Joined 18 June 2018


Joined 18 June 2018
14 JAN 2024 AT 23:38

मुझे सर्दियों से नहीं
ठंडे पढ़ते, पाँव से डर लगता है..!
बैचनियाँ समेट लेता हूँ
पर तन्हाई की, छाँव से डर लगता है..!
चोट खाने से अब इतना, ख़ौफ़ लगता नहीं
बस जो भरता नहीं कभी, उस घाव से डर लगता है..!
डर लगता नहीं वैसे ताज़े फूलों से मुझे
मुझे तो बीच किताबों के, सुर्ख़ गुलाब से डर लगता है..!
मुझे डर नहीं लगता, दूर तलक साथ चलने से
लौटने पर मिलने वाले रास्ते सुनसान से डर लगता है..!
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29 DEC 2023 AT 22:41

इस पार हूं या उस पार हूं ,संभला हुआ हूं या तार तार हूं..
कुछ भी कहा नहीं जा सकता ,किसी काम का हूं या बेकार हूं

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7 NOV 2023 AT 21:08

वाक़िये अनगिनत हैं ज़िन्दगी के, क़िताब लिखूँ या हिसाब लिखूँ ।।

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6 NOV 2023 AT 22:58

ढल जाए रात ज़रा, के सुकून आ जाए
ज़रा मौसम बदल जाए, के थोड़ा सुकून आ जाए..!

थोड़ी सर्दी है ख़ासी भी, काफ़ी बेक़रारी है
थोड़ी तबियत सम्हल जाए, के फिर सुकून आ जाए..!

औंस की चंद बूंदो ने, भीगा दिया है यादों को
ज़रा सी धूप निकल जाए, के फिर सुकून आ जाए..!

मुझे ख़तरा हुआ सा है, मेरे अपने ख़यालों से
ज़रा क़िस्मत बदल जाए, के फिर सुकून आ जाए..!

मैं ठहरा हुआ हूँ आज भी, उसी मोड़ पे
जो तू पिछे मुड़ के आ जाए, के फिर सुकून आ जाए..!

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10 OCT 2023 AT 23:55

नींद को मेरी नींद आती तो बहुत है
ज़िंदगी मेरी मुझे मगर, जगाती बहुत है..!

बंद करता हूँ दरवाज़ा ख़ुद ही मैं हाथों से अपने
ज़िंदगी फिर भी, महसूस कराती बहुत है..!

मैं समझ के भी नासमझ सा हूं, तेरे ख़ातिर
पर तेरा कुछ ना समझना ,समझता बहुत है..!

एक तरफ़ दिन उधेड़ देता है, उम्मीदों के तार
और रात है की, ख़्वाब दिखाती बहुत है..!

नींद को मेरी, नींद आती बहुत है
जिंदगी मेरी मुझे मगर, जगाती बहुत है...!

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26 AUG 2023 AT 22:33

पुराने यार, बस दो चार काफ़ी है
मुझे तो महीने में, बस एक इतवार ही काफ़ी है...!
मुसीबत में भला कौन देता है साथ किसी का
मेरे लाबो पे एक नाम तेरा, तो बस काफ़ी है..!
दीवारों से है दोस्ती, छेड़ लेता हूँ परदों को आते जाते
मैं हूँ अकेला यार, मगर जो है वही काफ़ी है..!
तमाशा भी बनाए क्या, क्या किसी से करे गुज़ारिश
कोई साथ ना हो रहने को तैयार, तो फिर तन्हाई ही काफ़ी है..!
छूटे ना कोई हाथ वैसे तो, ये कोशिश है
छुड़ा जाए कोई साथ, तो फिर ख़ाली हाथ ही काफ़ी है...!

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26 JUL 2023 AT 23:40

मैं यक़ीन का चश्मा लगाए हुए,
टूटे ख़्वाबों को तकिये तले छुपाए हुए ।
मैं रूठ बैठा हूँ ख़ुद से ही,
मैं खुद ही खुद को मनाएं हुए।
मैं खुद ही उम्मीद, खुद से ही लगाए हुए
एक दौड़ नहीं है ज़िंदगी, की जीतना ज़रूरी है,
मैं खुद को ये बात, समझाए हुए ।
यक़ीन है मुझे,की ख़्वाब मेरे नज़दीक़ ही हैं
बस अब मैं कोशिशो को गले लगाए हुए
मैं यक़ीन का चश्मा लगाए हुए,
मुस्कुराहटो से दोस्ती निभाए हुए .....

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25 JUN 2023 AT 0:28

Bs es baat ka sabar hai ,
Ki upar wale ko sab khabar hai ...!!

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16 JUN 2023 AT 22:16

Ye jo hukum hai ki,
Mere pass naa aaye koi ...
Isliye ruth ke baithe hai ,
Ke humhe manaye koi ..
Tumne toh mujhe palat ke bhi na dekha
Jab hum chahte the ke gaale se lagaye koi ...
Ke ab ye hukum hai ke
Mere pass naa aaye koi...

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25 MAY 2023 AT 22:41

Ek umar woh thi ,jaadu
Par bhi yaqeen tha ....

Ek umar ye hai , Haqeeqat
Par bhi shaq hai ...

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