ना जाने वो कैसे मेरे बिना कुछ कहे सब समझ जाते हैं हमें लगता है हम अकेले हैं हमें लगता है हम अकेले हैं लेकिन वो भी उधर हमें मेहसूस कर उस रात सो नहीं पाते हैं....
कि अब सोचता हूं लिखूं तोह क्या लिखूं अब मास्क में ढकी पहचान लिखूं या पहले जो चमकती थी वो मुस्कान लिखूं अब बीमार होने से डरता इंसान लिखूं या पहले जो मस्त रहता था वो अंजान लिखूं अब नजरें जो रहती परेशान लिखूं या पहले जो साथ रहती थी वो शान लिखूं
कि अब सोचता हूं लिखूं तोह क्या लिखूं अब जो चल रहे वो हालात लिखूं या पहले जो होती थी वो बेपरवाह मुलाकात लिखूं अब जो नहीं रहे उनका साथ लिखूं या पहले जो होती थी वो बिताई बात लिखूं अब जो सन्नाटे से भरी रात लिखूं या पहले जो होती थी आवाज़ों के साथ जज़्बात लिखूं...