मैं रोज़ उसे निहारता रह गया
उसकी चाँदनी को सवारता रह गया
देखते तोह सब है उसे
लेकिन मैं उसे दिल में उतारता रह गया...-
कि नसीब वाले को बदनसीब बना देता है
और बदनसीब को नसीब वाला
यह इश्क है जनाब
सब कुछ होकर भी अधूरा बना देता है
और सब खो कर भी पूरा बना देता है...-
तू हलक से उतर कर मेरे दिमाग पर असर कर जाती है
जो बाते दिल मे दबी हो वो सब बयान हो जाती है
चाहे गम कि आँधी हो या खुशी का त्योहार तो हर बार मेरा साथ निभाती है
कुछ लोगों ने बेफिजूल ही बदनाम करा है तुझे बल्कि तू हर रूप मे ढल जाती है
कुछ लोग तो बेवफा होते है तू तो हलक से उतर ते ही रोह को छू जाती है
आैर तेरा नशा ही है जो तेरी वफा का भी सबूत दे जाती है
तेरे आने से महफिल सज जाती है
और तू हर महफिल कि जान बन जाती है
एक तू ही तो है जो मुरदो मे भी जान डाल जाती है
इतना सब कुछ करती है तू पर दुनिया फिर भी तुझे समझ नही पाती है...-
कि खुद ही खुद का दिल तोड़ने में एक सुकून है जनाब
इसमें इलज़ाम लगाने वाले भी खुद ही है
और इलज़ाम लगना भी खुद पर है
कि खुद ही जिंदगी का जहर देने में एक सुकून है जनाब
इसमें मौत बोलाते भी खुद ही है
और मौत की तरफ जाते भी खुद ही है
कि खुद ही खुद को कंधा देने में एक सुकून है जनाब
इसमें रोना भी खुद के कंधे पर है
और चुप भी खुद को ही कराना है...-
ना जाने वो कैसे मेरे बिना कुछ कहे सब समझ जाते हैं
हमें लगता है हम अकेले हैं
हमें लगता है हम अकेले हैं
लेकिन वो भी उधर हमें मेहसूस कर उस रात सो नहीं पाते हैं....-
कि वो आग की तरह फैली और दिल को राख कर गई
मेरे जितने भी खराब हिस्से थे वो सब साफ़ कर गई...-
दिल में होकर भी दिल तोड़ ना सकी वो
हमसे चाह कर भी मुँह मोड़ ना सकी वो
कोशिश बहुत की उसने जाने कि
लेकिन चाह कर भी हमें छोड़ ना सकी वो,
शायद वो कोई रिश्ता रखना चाहती थी
पर उन टूटे हुए हिस्सों को जोड़ ना सकी वो...-
मशरूफ बहुत है वो
ना जाने उन्हें हमारी याद आती होगी
लेकिन यह जरूर है जनाब
जब हिचकि आती है उन्हें
वो हमारा नाम जरूर पुकारती होगी...-
कि अब सोचता हूं लिखूं तोह क्या लिखूं
अब मास्क में ढकी पहचान लिखूं
या पहले जो चमकती थी वो मुस्कान लिखूं
अब बीमार होने से डरता इंसान लिखूं
या पहले जो मस्त रहता था वो अंजान लिखूं
अब नजरें जो रहती परेशान लिखूं
या पहले जो साथ रहती थी वो शान लिखूं
कि अब सोचता हूं लिखूं तोह क्या लिखूं
अब जो चल रहे वो हालात लिखूं
या पहले जो होती थी वो बेपरवाह मुलाकात लिखूं
अब जो नहीं रहे उनका साथ लिखूं
या पहले जो होती थी वो बिताई बात लिखूं
अब जो सन्नाटे से भरी रात लिखूं
या पहले जो होती थी आवाज़ों के साथ जज़्बात लिखूं...-
कि अब आसानी से बाजारों मे मौत बिक रही है
ज़रा संभल कर चले जनाब
न जाने अब वो किसकी किस्मत पे अपना नाम लिख रही है...-