नूर तेज की सेज पर,
सजे गुमानी दास ।
नितानन्द निरखे तहाँ ,
चरण कमल के पास ।।-
सतगुरु अंजन आंजि कर,
खोले नयन कपाट ।
औंधे से सूधे किये ,
झलक उठी वह बाट ।।-
सतगुरु भर प्याला दिया,
अमल अमी रस सार ।
पीवत गगन कुं ले चढ़े ,
खुल गये मुक्ति द्वार ।।-
अलख स्वरूपी गैब गुरु,
भक्ति मुक्ति दातार ।
नितानन्द सूभर भरे ,
एकै नजर निहार ।।-
परमगुरु के चरण में,
नितानन्द का शीश ।
क्या जानू किस भाग से,
मिले आप जगदीश ।।-
कामी क्रोधी गुरु घने,
लोभी गुरु जग माहीं ।
नितानन्द वे गुरु सही,
अमरपुरी ले जाहिं ।।-
खानेजाद गुलाम हम,
गुरु तुम्हारे दास ।
भावें राखो बन्ध में,
या भावें करो खलास ।।-
नितानन्द भव सिंध में,
सतगुरु मिले जहाज ।
नातर यह जीव बूड़ता ,
झूठे कुल की लाज ।।-
कई जन्म भूले फिरे,
अबकै जागे भाग ।
नितानन्द सतगुरु मिले,
बुझी बलन्ति आग ।।-
गुरु चरनन की पहिनीं ,
नन्हा मन कर होय ।
नितानन्द तन खाल में,
उठे नूर खशबोय ।।-