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बंद कमरों के उजाले हमसे कुछ खफा से हैं
बाहर के ये बंद से अंधेरे हमपे कुछ मेहरबां से हैं||
नज़्म पूरी नहीं होती की तलब उठ जाती है
तुमसे फिर मोहब्बत करने की जिद में अढ़ जाती है||
रास्ता नहीं, मंज़िल नहीं, कोई साहिल नहीं है
चुप्पी नहीं,सुनसानी नहीं, महसूस न करूं और..
सुकून ही नहीं है||
तुम नहीं , मैं नहीं
गौर करने लगूं और ये दुनिया ही नहीं है||🍁
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