काफ़ी है की रात हमसफ़र है मेरी धूप तो तुम्हारी चाहत है न ! कल इक सादे पन्नें पर मैंने रंग-बिरंगे आसमान देखा और आज उसी आसमां में इक प्यारी सूरत देखी है ये पर्दे पर नहीं, पन्नों पर की गई बातें है...!
जरूरी हैं क्या.? यूं सांझ-सवेरे इबादत करना, आधी रात गए, चाँद बुलाना या फिर, मीठी सी ख़ामोशी लिए नज़रों को हर पल थकाना शामिल हैं, उदासी जब से दिन कुछ फीका-फीका हैं, तुम चुप न रहों बिन कहें सब तीखा-तीखा हैं।
एक बार सही नज़रें मिला लेने से बादलें हटा देने से छा जाएंगे तारें दिन में मिट जाएगी सारी नाराज़गी गुलाब सारे खिल जाएंगे बस, एक बार ही सही तुम्हारे देख लेने से
पहली बार जब देखा था, उसे चेहरा शांत और मुस्कुराहट भरा अपने कोमल निगाहों से बादलों को हटा रहा था हाथों में खंजर नहीं, सुकून था! जिसने ज़मीं से समेट अपनी हथेली में कैद कर सिर्फ, मेरे लिए लाएं थे।
आहट तो हर रोज़ होती हैं, मध्दिम शोर के बीच चांद की जो घर मेरे अक्सर आता हैं सुरीली आवाज़ के साथ, बिखेरता हैं रंग-रूप मेरे आंगन में, रात बादल मेरी खिड़की पे आया था, रात गुज़ारने सिर पर हवाओं का ताज लिए, सजाया कई ख्वाब और छू आधी रात को गायब हो गया.!!
सजाया ख्वाब एक जिसके पर्दे सफेद तो थे, पर तस्वीरों पर धूल थी मीठी दास्तां सी बह रही रात हवां जैसी मुझे तो... रास नहीं ये नमीं धूप की, उजालों में भी तहलका मचा रही पलकों पर सुबह लिए, वो ख्यालों में थे। पर आज, यादों ने भी साथ छोड़ दिया..!
बार-बार क्या सोचना क्यों हुआ? कैसे हुआ! तुमने ही तो सिखाया था रूठना-संवरना जो दिखाती हैं जिंदगी की परछाई हमारी सच्चाई बहुत अलग हैं इस दुनिया से, अलग हैं दूरियों से.. आसमां और ज़मीं में फर्क हैं निखरना बहुत हैं, लेकिन... तुम उसे क्यों संजोते हों जो तुम्हें देख संवरती हैं तुम्हें उसे निखारना हैं जो तुम्हें महसूस करती हैं...!