पंख....
काश मेरे पास भी पंख होते,
जिससे उड़ जाती मै आसमान में।
पर क्या भरोसा इस दुनिया का,
कर देते कैद मुझे ये पिंजरे में।
नहीं करनी उस पिंजरे की यात्रा,
जिसमे घुटता है दम हक़ीक़त का।
उड़ने की ख्वाहिश है, पर डरती हूं कैद होने से,
शायद इसी लिए नहीं है पंख मेरे पे।
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