कोई क्या समझेगा मेरे जज़्बातों को,
ये इतनी आसानी से अपना ग़म चुप लेते हैं।-
Janpreet Singh
(urbansurd)
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Joined 31 October 2017
12 FEB 2021 AT 21:04
11 FEB 2021 AT 23:11
कुछ एहसास ऐसा तेरा,
अब मुझ में कुछ नही मेरा,
कुछ ख़ुश्बू ऐसी तेरी,
साँस भी नही रही मेरी।-
8 FEB 2021 AT 17:45
थक गया हूँ अब इस राह पे चलते चलते,
कोई दरया आए तो थोड़ा डूब जाऊँ।-
1 FEB 2021 AT 22:24
गर्दिश में हैं तारे, और तू भी रूठा सा,
तेरे प्यार में ऐसे हारे, अब मैं भी टूटा सा।-
30 JAN 2021 AT 22:57
इंसान वो परिंदा है जो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए दर दर उड़ता है,
पर सुकून किसी दर पे नही आता,
क्यूँकि वो दर "तेरा" नही।-
25 JAN 2021 AT 23:07
कुछ ऐसी मेरी ज़िंदगी की बयान क्या करु,
कोई हाल पूछे तो मैं कहीं छुपा सा फिरूँ।-
25 JAN 2021 AT 13:40
थमी हुई ज़िंदगी को आगे बढ़ाने का,
उन्ही बाहों में लौट आने का,
और प्यार भरी ज़िंदगी को फिरसे गले लगाने का,
क्या पता कल हो ना हो।-