जब जब मैंने पीछे देखा
झूठी क़समें, वादे देखा
पैसों पे ही हैं मरते लोग
पैसों पे ही बिकते देखा
हुजूम कैसा, मय्यत कैसी
तन्हा ख़ुद को, मरते देखा
ख़त्म हो गई तलाश दिल की
जूं ही तुमको मैंने देखा
हरदम हारी ज़ीस्त, क़ज़ा से
सदा ज़ीस्त को सहमे देखा
छोड़ा 'जन्नत' सबने आख़िर
सबको मैंने, बदले देखा-
"SADNESS will LAST FOREVER"
—Van Go... read more
तेरी रहगुज़र का सितारा रहूंगा
मैं बन के सदा तेरा साया रहूंगा
बुरा हूं सभी की नज़र में भले ही
मैं अपनी नज़र में तो अच्छा रहूंगा
यहां नोचा जाता है फूलों को अक्सर
किसे ग़र्ज़ होगी जो कांटा रहूंगा
अगर बन न पाया हक़ीक़त तुम्हारी
अधूरे से ख़्वाबों का हिस्सा रहूंगा
छुपाए फिरोगी मुझे दिल में अपने
भुलाए न भूले वो क़िस्सा रहूंगा
जुबां पर न होगा कभी शिकवा 'जन्नत'
भले उम्र भर यूं तड़पता रहूंगा-
भवरों के दिल में थोड़ा डर दे मौला
और गुल के हाथों में ख़ंजर दे मौला
ये बंजारे आख़िर कब तक भटकेंगे
अब तो इनको भी अपना घर दे मौला
वो जो बेघर भीग रहे हैं बारिश में
उनके सर पे कोई छप्पर दे मौला
तन्हा राहों पे चलने से डरती हूं
साथ चले जो ऐसा रहबर दे मौला
आसान सफ़र से मुझको डर लगता है
हो मुमकिन राहों में ठोकर दे मौला
जिसके आख़िर में फिर 'जन्नत' मिल जाए
ऐसा मुझको अंजाम-ए-सफ़र दे मौला-
( पूरी ग़ज़ल कैप्शन में)
होंगे मज़लूम बेसहारा से
और ज़ालिम का ही ख़ुदा होगा
बेसुकूं बेक़रार उलझा सा
आदमी ख़ुद से लड़ रहा होगा-
यूं तो दिलचस्प इक कहानी थी
रूह के ज़ख़्मों की गवाही थी
जां सिहर जाती नाम से उसके
वहशत आहट की दिल में जारी थी
साथ भी उसका इक अज़ीयत था
और जुदाई भी मौत जैसी थी
सांस लगती थी रुकने क़ुर्बत में
हिज्र में इक अलग बेचैनी थी
जिस्म का जिस्म से त'अल्लुक़ था
दरमियां रूह एक क़ैदी थी
प्यार वो था नहीं मगर 'जन्नत'
उसकी तासीर इश्क़ जैसी थी-
आख़िरी एक जाम हो जाए
जग भले फिर तमाम हो जाए
क्या ख़बर देखे कौन सुबह नई
किसका कब इख़्तेताम हो जाए
अपनी तन्हाई गर बयां कर दूं
आईना हम कलाम हो जाए
है उस आदत को छोड़ना बेहतर
जो ज़माने में आम हो जाए
जो लगे गुफ़्तुगू पे पाबंदी
फिर नज़र से कलाम हो जाए
मौत अचानक से आ मिले 'जन्नत'
और अचानक ही शाम हो जाए-
(पूरी ग़ज़ल कैप्शन में)
आंँखों में अब नशा नहीं मिलता
मयक़दा भी खुला नहीं मिलता
हाल अपना बयां करूंँ किस से
कोई दिल ग़म-ज़दा नहीं मिलता-
वो गया ले के ज़िंदगी मेरी
हो गई मुझ में ही कमी मेरी
बीच सागर में भी हूं प्यासी मैं
हँस रही मुझ पे तिश्नगी मेरी-
था दिन भर यहां लोगों का आना जाना
मगर सोचो क्या होगा, जब रात होगी-