नो सौ चूहे खाकर, बिल्ली चली हज पर,
जो हमेशा से सुनते आए है,
वो कहानी जो थी,
इक बिल्ली की चालाकी की,
किस तरह उसने कुछ चूहों को फंसाया,
उम्र ढली, ताकत ना रही
तो उन्हें छल से शिकार बनाया,
अब ये कहानी हमें ये सिखाती है,
कि फितरते कभी बदलती नहीं,
पर क्यूँ न कहानी बदले,
और ये मान ले कि नो सौ चूहे खाकर ही सही,
आखिर बिल्ली भी बदली और हज गई,
गलतियाँ या गुनाह तो जाने-अनजाने हम सभी से हो जाते हैं,
मायने रखता है ये,
कि उनसे सीख लेकर बेहतर होते है हम,
या उम्रभर उन्हीं को दोहराते हैं,
तो नो सौ चूहे खाकर आखिर बिल्ली भी गई हज पर,
आज से यही मान जाते हैं...
- जयशीला (Tamanna)
30 JUN 2018 AT 20:33