माटी की काया, माटी में समाई
खाली हाथ आए, खाली है जाना
बात पते की, बड़े-बड़ों ने समझाई
फिर भी मन मोही, पड़ा प्रीत और जंजाल में
मन में ना संयम, ना जाने किस बवाल में
ख्यालों की अपनी ही दुनिया रचाई
रिश्ते ना नाते, ना माया ना काया
"मैं और मेरा" में काहे उम्र लुटाई
माटी का खिलौना, अंत माटी ही होना
रहे ना संग खुद की भी परछाई
छल और छलावा, व्यर्थ अहं का दिखावा
काहे ना समझे पीर पराई
जितनी भी उम्र काटे, क्यूँ ना खुशियाँ बांटे
हो जीवन की यही असल कमाई...
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