वो मुस्कुरा कर... मुझको रुलाने लगे...
हम मुस्कुरा कर... उनको भुलाने लगे...
लोग कहते है... चाहत किसी की नही...
इक सौदा दिलों का... जो बिकने चले...
गर पता है...की मंजिल मिलेगी नही...
फिर क्यूं ये सफर... साथ चलती रही...
उनकी बातों से तकलीफ़... होती तो क्या...
फर्क परता नही... हम जिए या मरे...
रास्ते है अलग... फिर भी मंजिल तू क्यू...
है सफर ये अनोखा... फिर रूठू मैं क्यू...
ये सफर है तेरा... न मैं हकदार हूं...
बस चलता समंदर में... इक पतवार हूं...
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