रूहानियत भरी इश्क का मोल क्या जाने वे, जिन्हे इश्क का इल्म तक न था । रूहानियत भरी इश्क का मोल क्या जाने वे, जिन्हे इश्क का इल्म तक न था । रूह से इश्क करते-करते ना जाने कितने दफ़न हुए, कितने जल गए। कइयो ने खोया अपना सादापन, कइयो ने अपना जीवन, पर वे मुस्कुराये और फिर अपने घर को चल दिये।
कुछ बातें थी जो अधूरी रह गई, कुछ गलत फैमियो ने पनाह ली, कुछ समाज की कुरीतियों ने, क्या अब नही मिलोगी ये तो पता नही, पर लेखनी में तुम जरूर मिली हो और मिलती रहोगी ।।