अंधेरी सी उस रात में सन्नाटा कितना अजीब था,
मानो कुछ खो गया हो जो मेरे बेहद करीब था।
बाहर का सन्नाटा अंदर के शोर से ऊलझ रहा था,
और इसी कशमकश में मेरा मन कविता लिख रहा था।
जिंदगी के पहलुओं को खामोशी से समझ रहा था,
अतीत के पन्ने पलट भविष्य गढ़ रहा था।
रात के अंधेरे से सुबह के उजाले तक बढ़ रहा था,
जाने कैसे वो अशांत मन फिर शांत लग रहा था।-
सोती हुई रातों में भी
खुद को जागते हुए देखा है।
हाँ, मैंने मेरी ताकत को भी
हारते हुए देखा है।
संघर्षों के बीच भी
खुद को लड़ते हुए देखा है।
मैनें 'कल' नहीं देखा
पर मैनें "कल" को देखा है।-
सुना था जीवन में अक्सर,
किसी का साथ जरूरी होता है।
आज समय नें यह सिखाया,
एकांत जरूरी होता है।।
स्वयं के विश्लेषण के लिए,
मन शांत जरूरी होता है।
उसी शांत मस्तिष्क के लिए,
एकांत जरुरी होता है।।
खुद को अकेला समझकर,
तू क्यों परेशान होता है।
एकांत राह दिखाएगा,
जीत का आगाज यहीं से होता है।।-
बिछड़ना तय है उनका।
मिलना लिखा है, जिनकी तकदीर में।।
कल बिछड़ने के डर से।
आज मिलना ,टाल भी तो नहीं सकते हैं।।-
न आरजू चाँद की है
न दिल सूरज का दिवाना है।
जो हमारा हो ही नहीं सकता
उसे तमन्ना ही क्यूँ बनाना है।-
कोई नहीं जाता वहाँ से ,
जहाँ प्यार मिल रहा हो।
जाते अक्सर वहाँ से हैं,
जहाँ प्यार मिला करता था।-
एक जवाब हुँ मैं।
अपमानों को सहती,
सम्मान हुँ मैं।
कमजोर समझी गई,
शक्ति का नाम हुँ मैं।
भीड़ में पहचान बनाती,
इंसान हुँ मैं।-
सहेज कर रखी है तस्वीर तुम्हारी
आज भी उस दराज में,
जहाँ यादों का कारवाँ तुमसे शुरू
तुम पे ही खत्म होता है।-
वे कल तक जो हमे बेकार समझते थे,
आज वो हमे बेहिसाब समझते हैं।
कहते थे आखिर लिखती क्या हो तुम ?
आज वो हमारी शायरी बेमिसाल समझते हैं।-