Jahnavi Karn  
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Joined 2 July 2020


Joined 2 July 2020
11 OCT 2022 AT 18:54

अंधेरी सी उस रात में सन्नाटा कितना अजीब था,
मानो कुछ खो गया हो जो मेरे बेहद करीब था।
बाहर का सन्नाटा अंदर के शोर से ऊलझ रहा था,
और इसी कशमकश में मेरा मन कविता लिख रहा था।
जिंदगी के पहलुओं को खामोशी से समझ रहा था,
अतीत के पन्ने पलट भविष्य गढ़ रहा था।
रात के अंधेरे से सुबह के उजाले तक बढ़ रहा था,
जाने कैसे वो अशांत मन फिर शांत लग रहा था।

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24 JUL 2022 AT 20:50

सोती हुई रातों में भी
खुद को जागते हुए देखा है।
हाँ, मैंने मेरी ताकत को भी
हारते हुए देखा है।
संघर्षों के बीच भी
खुद को लड़ते हुए देखा है।
मैनें 'कल' नहीं देखा
पर मैनें "कल" को देखा है।

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22 JUL 2022 AT 22:44

सुना था जीवन में अक्सर,
किसी का साथ जरूरी होता है।
आज समय नें यह सिखाया,
एकांत जरूरी होता है।।
स्वयं के विश्लेषण के लिए,
मन शांत जरूरी होता है।
उसी शांत मस्तिष्क के लिए,
एकांत जरुरी होता है।।
खुद को अकेला समझकर,
तू क्यों परेशान होता है।
एकांत राह दिखाएगा,
जीत का आगाज यहीं से होता है।।

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7 JUL 2022 AT 18:46

बिछड़ना तय है उनका।
मिलना लिखा है, जिनकी तकदीर में।।
कल बिछड़ने के डर से।
आज मिलना ,टाल भी तो नहीं सकते हैं।।

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7 JUL 2022 AT 18:20

न आरजू चाँद की है
न दिल सूरज का दिवाना है।
जो हमारा हो ही नहीं सकता
उसे तमन्ना ही क्यूँ बनाना है।

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7 JUL 2022 AT 13:35

कोई नहीं जाता वहाँ से ,
जहाँ प्यार मिल रहा हो।
जाते अक्सर वहाँ से हैं,
जहाँ प्यार मिला करता था।

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30 JUN 2022 AT 21:07

एक जवाब हुँ मैं।
अपमानों को सहती,
सम्मान हुँ मैं।
कमजोर समझी गई,
शक्ति का नाम हुँ मैं।
भीड़ में पहचान बनाती,
इंसान हुँ मैं।

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13 APR 2022 AT 23:19

सहेज कर रखी है तस्वीर तुम्हारी
आज भी उस दराज में,
जहाँ यादों का कारवाँ तुमसे शुरू
तुम पे ही खत्म होता है।

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14 MAR 2022 AT 19:47

वक्त को जरा वक्त दो,
वक्त आने पर वक्त बदल जाएगा।

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26 FEB 2022 AT 21:46

वे कल तक जो हमे बेकार समझते थे,
आज वो हमे बेहिसाब समझते हैं।
कहते थे आखिर लिखती क्या हो तुम ?
आज वो हमारी शायरी बेमिसाल समझते हैं।

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