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तुम जब भी मिलना ,
मत देना गुलाब ,
मुझे गुलाब कि खुशबू से कहीं ज़्यादा तुम्हारे बालों की खुशबू पसन्द हैं।
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हम अभी भी हर रातों में एक उम्र काटते हैं,
हर दफ़ा मोबाइल में बड़े आस से झांकते हैं
थकी रहती हैं आँखे दिन भर तुम्हारी याद में,
आओगे कभी न कभी इसी आस में हम रोज जागतें हैं।-
कुछ दिनों से सियासी रंग हर कपड़े में चढ़ रहा है,
कोई राष्ट्र को बदनाम तो कोई तिरंगे का अपमान कर रहा है,
कौन सही है,
कौन गलत है,
इसका थोड़ा अनुमान लगाइए,
कुछ यादें ताज़ा करिए,
जरा संविधान पढ़कर आइए,
थोड़ी सी ही सही सियासी सहूलियत को बनाये रखिये,
तब किसी पर उँगली उठाइये।
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हर वर्ष दबी आवाज़ को ,एक जोरो की अंगड़ाई आती है,
हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन तक़लीफ़ ख़ुशी और कसमें दिलाई जाती है,
एक धागे के सहारे भी निडर हो जाती हैं न जाने कितनी बहनें,
उनको क्या पता इस धागे क़ीमत सरहद पर जान से भी चुकाई जाती है...-
किसी से मिले,और हमनें उनसे यूँ पहचान बनाई,
बस कुछ नहीं उन्हें हमनें अपने हाँथो से बनी चाय पिलाई...-
ज़ख्म सिलने के लिए कोई धागा मिल जाये,
तुझसे मिले दर्द भी तो ख्वाहिश इतनी की....ज़्यादा मिल जाये,
सुन रखा है तेरी दरियादिली के अनेकों क़िस्से,
चाहत इतनी....क़िरदार तुम्हारे क़िस्से को हमारा मिल जाये,
जो टकरा गए किसी मोड़पर यूँ अचानक,
ये ख्वाहिश वो मोड़ दोबारा मिल जाये.....
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"पुस्तकें ,
इंसानी दिमाग़ को आपस मे जोड़ने का सबसे उच्चस्तरीय साधन हैं।"
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