आजकल रिश्तेदारी का मतलब
हिस्सेदारी से हैं।।-
My #tage-mywordsmypower
यूं तो मैंने किसी से बोला नहीं,
पर किसी ने बिना बोले समझा भी नहीं !!
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घाटी हुई लाल,
वादियां हुई वीरान
एक बार फिर धर्म
के नाम पर खेला गया
खूनी खेल...
बताओं आतंकियों को कब
होगी जेल ....?
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निभाने की तो बात ही क्या करें,
हमने तो वहां भी रिश्ते निभा दिये,
जहां शायद हमारी जरूरत किसी को भी
नहीं थी ।।
इसलिए अब रिश्ते निभाने का
मन ही नहीं करता-
मैं जानता हूं ,
अब जो मांगा मैंने अपना हक
तुम दे पाओगें नहीं,
और
अगर दिया भी तो
किसी के साथ अन्याय कर गुजरोंगे..
हां आज भी मोहब्बत हैं ,
तुम्हारी आंखों से...
इसलिये तुम्हें भूलाना नहीं चाहता
प्रेम तो हैं ,आज भी तुम से ही,
बस मैं अब जताना नहीं चाहता...।।
दूर चला जाता हूं, क्योंकि
अब निभाया नहीं जाता,
पर खूब भाती है,तेरी सादगी
इस दिल को...
कि दिल में अब किसी का घर
बसाया नहीं जाता...।।
© जागृति शर्मा
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लोग तलाशते रहे,उसके बारे में,
जानने के लिए,
उसकी insta ID,fb diary
और
मैंने उसकी आंखों में देखा
और हालै दिल बयां कर डाला ।।-
हर सवाल का जवाब हो जरुरी नहीं,
पर हर जवाब एक सवाल जरूर उत्पन्न
करता हैं।-
कांच की चूड़ियां
मन को भाती हैं रंग बिरंगी चूड़ियां ...
कलाई को खूब सजाती हैं,
खनखनाती चूड़ियां..।।
खास मौकों , त्यौहारों में पहनी जाती हैं
गोटे वाली चूड़ियां...,मोती जड़ी चूड़ियां..।।
भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं ,
रंग बिरंगी चूड़ियां...
बिन इसके अधूरा है सोलह श्रृंगार...।
कभी प्रेम तो कभी सुहाग की निशानी
बनती रही हैं चूड़ियां....
कृष्ण जी ने भी राधारानी को
चूड़ी वाला बन पहनायी है, चूड़ियां...।।
सुहाग का प्रतीक मानी जाती है,
लाल कांच की चूड़ियां.... ।
चढ़ती माता रानी के जगराते में..
कांच की चूड़ियां....।।
सावन में सजती हरे कांच की चूड़ियां...
मानी जाती सौभाग्य का प्रतीक
खनखनाती हरी कांच की चूड़ियां....।।
पिया के मन को भाती हैं, चूड़ियां...
तभी तो खास उपहार मानी जाती हैं,
रंग -बिरंगी चूड़ियां...।।
मन को हर्षाती हैं चूड़ियां...
घर -आंगन को समृद्धि से भर्ती हैं
रंग-बिरंगी चूड़ियां...।।
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दूध फट जाये, खट्टा हो जाये
तो पनीर बना लिया जाता हैं ,
पर अगर मन फट जाये,
और
खट्टा हो जाये ,तो क्या किया जाये..?-
छोड़ आये हम उन गलियों को...
छोड़ आये हम उन गलियों को...
जहां बचपन जिया करते थे...।।
छोड़ आये हम उन गलियों को...
जहां मां के हाथ के बने अचार खाया
करते थे...।।
छोड़ आये हम उन गलियों को...
जहां प्रेम की कलियां खिला करती थी...
जहां फूलों की खूशबू से हर बगिया महका
करती थी,
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