Jagadeesh Chandra Shrivastava   (जगदीश चंद्र श्रीवास्तव)
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Joined 31 January 2018


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Joined 31 January 2018

'शून्य' से लेकर 'शिखर' तक
'गांव' से लेकर 'शहर' तक
'साथ' देती रही वो 'हमेशा'
'वक्त' के आठो 'प्रहर' तक


-



'अमरता' का 'भ्रम' लिए
'जिंदगी' अब भी 'जारी' है
'गिनकर' 'सांसे' हैं मिली
'एक-दिन' सबकी 'बारी' है।

'जी' लिए हो 'जितना'
या अभी जो 'जीवन' 'शेष' है;
'सोचना' जो 'कुछ' मिला
'वो सब' कितना "विशेष" है;

एक 'श्वास' 'भीतर'
'दूसरी' 'बाहर' क्या आएगी?
'जिंदगी' एक "बुलबुले" सी
'न' जाने कब "फूट" जाएगी?

'स्वप्न' सरीखा ये "जीवन"
'हर-पल' को 'रंगीन' करो
'लौट' नहीं आने वाला 'कुछ'
"ईश्वर" पर 'यकीन' करो।
©जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव



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'अमरता' का 'भ्रम' लिए
'जिंदगी' अब भी 'जारी' है
'गिनकर' 'सांसे' हैं मिली
'एक-दिन' सबकी 'बारी' है।

'जी' लिए हो 'जितना'
या अभी जो 'जीवन' 'शेष' है;
'सोचना' जो 'कुछ' मिला
'वो सब' कितना "विशेष" है;

एक 'श्वास' 'भीतर'
'दूसरी' 'बाहर' क्या आएगी?
'जिंदगी' एक "बुलबुले" सी
'न' जाने कब "फूट" जाएगी?

'स्वप्न' सरीखा ये "जीवन"
'हर-पल' को 'रंगीन' करो
'लौट' नहीं आने वाला 'कुछ'
"ईश्वर" पर 'यकीन' करो।
©जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव



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'अमरता' का 'भ्रम' लिए
'जिंदगी' अब भी 'जारी' है
'गिनकर' 'सांसे' हैं मिली
'एक-दिन' सबकी 'बारी' है।

'जी' लिए हो 'जितना'
या अभी जो 'जीवन' 'शेष' है;
'सोचना' जो 'कुछ' मिला
'वो सब' कितना "विशेष" है;

एक 'श्वास' 'भीतर'
'दूसरी' 'बाहर' क्या आएगी?
'जिंदगी' एक "बुलबुले" सी
'न' जाने कब "फूट" जाएगी?

'स्वप्न' सरीखा ये "जीवन"
'हर-पल' को 'रंगीन' करो
'लौट' नहीं आने वाला 'कुछ'
"ईश्वर" पर 'यकीन' करो।
©जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव



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दिलों में प्रेम की दरिया का पानी हो
इश्क़ की तिश्नगी पावन रूहानी हो
साथ एक दूसरे का हरदम बना रहे
इस प्रेम की ऐसी अमिट कहानी हो

©जगदीश चन्द्र श्रीवास्तव

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'गरल' का 'प्याला' लिए
मैं 'सुधारस' की 'चाह' में हूँ
'फिक्रमंद' जो 'मेरा' नहीं
मैं उसी की "परवाह" में हूँ

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मुग्धता 'अतीत' में,कर्मठता 'वर्तमान' में और दूरदर्शिता 'भविष्य' में जीना सिखाती है

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पीओके नहीं पूरा पाकिस्तान चाहिए
रूह कांप जाए चोट का ऐसा निशान चाहिए
मोदी को नहीं भारत देश को ललकारा है
आतंकियों की लाशों से पटा कब्रिस्तान चाहिए

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■■ चाह ■■
'फिक्रमंद' रहता हूँ;
मुझे तुम्हारी 'परवाह' है
'तुम' 'चाहो' न 'चाहो'
'मुझे' तुम्हारी "चाह" है!

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'भीड़' का 'इंसान' होना सरल है
'भीड़' में "इंसान" होना कठिन!

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