कई सालों पहले
उसने कहा था पहाड़ो में आओ "जाना"
ये सर्द रातें,येबादलों का छत,ये लहलहाती हरियाली
सुकून भरा दिन,बेफिक्र ज़िंदगी
मोहब्बत भूल जाओगे जो अधूरी रही।
वो तो रही नही साथ पर उसकी यादों के सहारे में जा रहा उस पहाड़न की बातों यादों तस्वीरों को ताजा करने।
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में जब भी मुसीबत में रहा तो तेरे साथ के सपने बुनता रहा।
हर दफ़ा साथ न देने के बस तेरे हज़ारो बहाने सुनता रहा।
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जब भी मैं तुझे देखता हूँ
अब बस एक ख्याल देखता हूँ ।
हम मिल ना पाए सच्ची मोहब्बत करके
ना मिलने का इन आँखों में मलाल देखता हूँ।
क्यों नही मिल पाते सच्ची मोहब्बत करके भी दो लोग "जाना"
दिल में कुछ इस तरह के सुलगते सवाल देखता हूँ।
जीता था इक राजकुमार सी ज़िंदगी वो शख्स
अब तो बस मयखानों में उस शख्स को बेहाल देखता हूँ।-
तेरी झूठी मोहब्बत अब काम की नही
तुझे छोड़ते है अब हम नही आएंगे।
मुझे नही चाहिए ये मतलबी रिश्ते जीवन मैं
तुझे छोड़ते है अब हम नही आएंगे।
तु पछतायेगा मुझे खोने के बाद "जाना"
खैर छोड़ देर बहुत हो चुकी होगी अब हम नही आएंगे।
तु आना चाहेगा भी तो नही आ पाएगा वापस "जाना"
हम जा चुके होंगे शहर से तेरे अब हम नही आएंगे।
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छोड़कर अकेला वो गए जो हमें
उनका इंतजार करते करते रात कट गई।
जब वो आए तो हम नाराज ही ना हो सके
बात करते करते शिकायत की बात कट गई।
अब अच्छा नही लगता उनके साथ रहना हमें
लगता है मोहब्बत की लकीर हाथ से आज कट गई।
और "जाना"तो वैसे ही बदनाम है बेवफ़ाई के किस्सों में
पर इन बफादारों की भी ज़माने में अब नाक काट गई।
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में तो जिंदगी में ही बेवजह व्याज चुका रहा हूँ
उधार लिया नही फिर भी कर्ज चुका रहा हूँ।-
उसके बारे
कुछ ना पूछो में उसके बारे कुछ नही जानता।
सच कहूँ
में उसे मानता हूँ पूरी तरह पर वो मुझे नहीं मानता।
मोहब्बत इतनी
लाखों की भीड़ में पहचान लेता हूँ उस शख्स को।
बस मसला ये है
वो चंद लोगों के बीच कहता है कि इस शख्स को में नही जानता।-
ज़िंदगी ने उलझन के शिवा दिया क्या है
इक अधूरा इश्क़ और दर्द ताउम्र सहन और कुछ किया क्या है।
ना करते मोहब्बत तो शायद खुशहाल रहती ज़िंदगी
सब छीन कर पूछते हो कि मैंने तुमसे लिया क्या है।
कर दी पूरी ज़िंदगी बर्बाद "जाना" तुम्हारे ख़ातिर
फिर भी ताने देते हो कि मैंने तुम्हारे लिए किया क्या है।
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बैठे संग जिसके उसके साथ गद्दारी नही की थी
बस बैठने वाले बैठते गए किसी ने बफादारी नही की थी।
और सजन नाम था उसका "जाना" दिल लूट गया जिसके नाम
वो शख्स गैर का निकला उसने ईमानदारी नही की थी।
लूट के दिल टूटा दर्द ने कसर करारी नही की थी
एक शब्द ना निकला उसके खिलाफ "जाना" हमने मोहब्बत उधारी नही की थी।-
लिखना चाहता हूँ बहुत कुछ पर लिख नही पा रहा
शब्द मिलते हैं बहुत पर उन्हें जोड़ नही पा रहा।
शायद ये नया रिश्ता आ रहा मेरी कलम और मेरे बीच
नया नया रिश्ता है इसलिए तोड़ नही पा रहा।
आदत बेवफाई की तेरी जाती नही "जाना"
जभी हर इक हसीना को बगैर मोहब्बत छोड़ नही पा रहा।
तू शायर अच्छा पर इंसान बड़ा बेवफा है "जाना"
तभी राहें अपनी सफलता की और मोड़ नही पा रहा।-