चुपचाप ठोकरें तो बहुत सी खाईं
आख़िरी अंज़ाम का, कभी सोचा ही नहीं..
मोहब्बत की थी एक शख्स से कभी
हाल क्या होगा मेरा, कभी सोचा ही नहीं..
कुछ खुशियां बटोरनी चाही मुश्किल से कभी
हार जायेंगे कभी ख़ुद ही से, सोचा ही नहीं..
रोते रहे रात भर कसुर अपना समझ कर
मगर इन आँखों का हाल, कभी सोचा ही नहीं..
आज बैठे हैं सोचते हुए अंज़ाम मौत अपना.
बाद मेरे क्या होगा हाल, कभी सोचा ही नहीं..
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