J Verma   (J. verma)
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Joined 25 September 2020


Joined 25 September 2020
27 SEP 2021 AT 17:41

खुद से झूठ बोलता है ।
तुम्हारी मुस्कान अब बनावटी हो गई है ।
वो निश्छल मुस्कान जिसका आईना आदी था ।
आईना हटाए वो झूठी चादर कैसे ।
जो आेढ़ रखी है,
आपने अपने चेहरे पर।
जो आईने की सच्चाई के रास्ते का राेेढ़ा है ।

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14 AUG 2021 AT 13:37

अपने अरमानाें को दबाकर ,
किसी अपने को खुशी देना
गुनाह है क्या ।
जाे नहीं समझे इस इजहार काे,
उनके लिए जिन्दगी भी खपाना
काेई गुनाह है क्या ।
चले है जिस रास्ते जन्जान तो है,
पर साथ है उसकी यादें ।
रास्ता कट जाएगा,उन्हीं,
गुमनाम यादों के सहारे ।
शायद अब नहीं मिलते मिजाज,ये जरूरी भी नहीं ।
लेकिन मेरे अरमानाे को ,कुचलना भी जरूरी नहीं ।

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18 JUL 2021 AT 9:10

Life is a mirror
Which seen you different aspects
like moon.
It's on up to you
Understand or not.....

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12 JUL 2021 AT 13:39

अपनाें को सच्चाई से रूबरू कराना बंद कर दाे।
वर्ना उनके सबसे बड़े दुश्मन बन जाआेगे ।
आैर रह जाआेगे सिर्फ तुम
काेई ये भी नहीं पूंछेगा कैसे हो तुम ।

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9 JUL 2021 AT 10:42

मुस्कुराते हुए चेहरे बड़े अजीज लगते है ।
काेई ये नहीं पूछता कि वो मुस्कुराहट
के पीछे कितने गम छिपाए फिरते है ।

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6 JUN 2021 AT 20:26

A innocent child

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2 JUN 2021 AT 20:31

हमेशा एक सन्नाटा ।
तेरे साथ गुजारे एक एक पल की याद ।
एेसा लगता है मानो कोई
सुमधुर संगीत गूँज रहा हो
अंतर्मन के किसी काेने में ।

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31 MAY 2021 AT 13:39

जब कभी मुझे साेचकर,
हाेठ सुर्ख हो जायें।
तब समझ लेना,
मुझे फिर से प्यार करने लगी हों ।

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30 MAY 2021 AT 17:41

कैसे राेकते,तुम रुकने को तैयार न धीं।
कुछ नये सपनाें में मशगूल धी ।
अब ये कहती हो बात पुरानी हो गई ।
हम से अब मैं आैर तुम हो गए ।
जरा दिल की नजर से देखना ,
कि तुम क्या धीं क्या हो गई।
समर्पण कहाँ से लाउं,जब तुम ही कहती हो ।
हम से अब मैं आैर तुम हो गए ।
चलाे तुम्हारा ये सितम भी गंवारा
चल तो दिए हो जिधर मैं नही जानता ।
पर ये जानता हूँ कि वो रास्ते सिर्फ तुम्हारे हाेगें ।

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28 MAY 2021 AT 23:01

आके सभी
अरमान भूल जाता हूँ ।
तुम जो भींच लाे बांहाे में,
तो शैतान बन जाता हूँ ।
शरारत की हदें पार कर,
मैं तेरा हमनवा बन जाता हूँ ।

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