तुझे मैं पाना नहीं चाहती
पर तुझे देखने का एक भी मौका गवाना नहीं चाहती
तुझे दुर से चाहना मंजुर हैं मुझे
मेरी इस इबादत पर गुरूर हैं मुझे
तुझे अपने लफ़्जों मैं चुपा के रखुंगी
आपनी शायरी मैं बसा के रखुंगी
चाँद सा हैं तू
तेरी चाँदनी नहीं...
मैं खुद को जमींन बना के रखुंगी...!!!
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