ᴠɪᴊᴀʏ sʜᴀʀᴍᴀ   (मेरे एहसास-ᴠɪᴊᴀʏ sʜᴀʀᴍᴀ)
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Joined 14 October 2019


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एक आशुफ्ता मौहब्बत का अफसाना और
आशुफ्ता जिंदगी
पीछे छोड़ आया हूं मैं भुला चुका हूं मैं
भ्रम है मेरा
फिर कोई याद परेशां करती है
अब भी दिल रखता है पूरा हिसाब मेरी जिंदगी का
#3468 3/5/24
(आशुफ्ता - अस्त व्यस्त, बिखरा हुआ, परेशान)

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शून्य हो जाता है सब कुछ
एहसासों में खालीपन वक़्त भी खाली खाली
लगता है यूं ही गुजर जाता है
#3467 2/5/24

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सोचता हूं मौहब्बत सा हंसी खूबसूरत जादुई होगा खुल्द भी
मैंने देखा है जहां में
मौहब्बत जिंदगी बदल देती है बीमार को अच्छा कर देती है बदसूरत को भी खूबसूरत बना देती है
#3466 1/5/24
(खुल्द- जन्नत स्वर्ग)

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एक भंवर सी है जिंदगी
हर रास्ते पर रुककर कई सवाल छोड़ जाती है जिंदगी
किसी अजनबी के जैसे सुलूक करती है जिंदगी
#3465 1/5/24

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जिंदगी भी एक सिलसिला है तजस्सुस का
विशाल सी जिंदगी जीने को जरूरी है कोई बहाना भी
हर तजस्सुस एक बहाना बन जाती है
जिंदगी जीने और वक़्त बिताने का
#3464 30/4/24
(तजस्सुस - जिज्ञासा)

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जानता हूं पहचानता हूं खुद को
सिर्फ इतना ही नही काफी है
मन में उलझन तो बड़ी भारी है
दुनिया में सही गलत अपने पराए को समझने की
कशमकश मन में अभी जारी है
#3463 29/4/24

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कुछ हासिल करने की खातिर निकले थे एक सफर पर
मुसीबतों राहतों चाहतों के सिलसिलों से निकलकर
कुछ पाकर कुछ खोकर कुछ सीखकर
जिंदगी की वास्तविकता से रूबरू होने वापस आ गए हैं
#3462 29/4/24

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तुमने ना जाने क्या कह दिया
गहरी सोच में है दिल ए बेताब
ना होश बाकी रहा ना ख्याल दूसरा कोई और
#3461 28/4/24

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के भी कुछ नियम हैं एक प्रयास समझने का
भी है एक रहस्य अनसुलझा है धनी ज्ञानी तो निर्धन अज्ञानी कोई
धनी ज्ञानी बनना चाहे हर कोई निर्धन अज्ञानी ना कोई
फिर भी कारीगरी का नियम ना समझे माने कोई
जन्म मिले मनुष्य का बारंबार ये ना समझे माने कोई हर जन्म में करके अभिमान दौलत शौहरत का सजा के तौर पर खुद ही बने निर्धन अज्ञानी अगले जन्म में ज्यादातर यहां कोई
करे जो कर्म अच्छा पाए वही मुक्ति यहां मिले अगला जन्म उसे धनी ज्ञानी का कहो कुसूर कारीगरी का है क्या कोई
जो पाए जन्म धनी ज्ञानी का और फिर करे गुरुर दौलत पर करे ज्ञान का प्रयोग छल से
फिर पाए अगला जन्म निर्धन अज्ञानी का तो कुदरत का क्या कसूर है कोई
एक निरंतर चलने वाला सिलसिला जन्म मृत्यु का
अब सोचो और कहो कुदरत की कारीगरी का क्या कसूर है कोई
#3460 27/4/24

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बीत गया गुजरे वक़्त के साथ
फिर भी लौट कर आता है
वर्ष के चार मौसम की तरह बार बार
#3459 26/4/24

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