Itishree Dash   (Itishree Dash)
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Million people million views..One supreme truth hold these together
Joined 29 July 2020


Million people million views..One supreme truth hold these together
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11 APR AT 0:40

"मैं" से आती है मां,
जो लगती तो है माया
पर हैं असल में वो ब्रम्ह की छाया।
जन्म देती हैं वो देह,
देह से वो बना सकती है योद्धा,
मांगों तो दे भी सकती हैं वो चेतना रूपी श्रद्धा।
लिंग भेद में उसे बांटते हैं,
माया माया बोलकर स्त्री पुरुष के खेल में फसते हैं,
पर मां असल में लिंग से परे हैं।
आग में वो जलती है,
सत्य,धर्म की युद्ध वो लढ़ती हैं,
करुणा,प्रेम की तिरंगा वो फैलाती है।।
अंधकार को वो हुंकारती है,
काट राक्षस की सिर, बनती हैं वो प्रेम की दाता
जिन्हें स्नेह से कहते हैं जन्म दायिनी माता।।
मां हैं सृष्टि चक्र की माली,
काल में है वो महाकाली,
अनंत धार की हैं वो बहती नदी,
ब्रम्ह में स्थित, हैं वो ब्रम्ह की प्रतिनिधि।।

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7 APR AT 20:45

जीवन की गरिमा हो तुम,
तुम्हें चुनना चाहे हर मन।
पंछी की उड़ान हो तुम,
तुम्हें छूना चाहे हर पंख।
सूर्य की लालिमा हो तुम,
तुम्हें पहनना चाहे हर कर्ण।
गांडीव की टंकार हो तुम,
तुम्हें साधना चाहे हर अर्जुन।
सागर से भी गहरा हो तुम,
तुममें डूबना चाहे हर अहम।
अस्तित्व की प्रश्न हो तुम,
तुममें खोना चाहे हर खोजी।
जीवन की गरिमा हो तुम,
तुम्हें चुनना चाहे हर मन।

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23 MAR AT 12:06

A bird of the deeper sky,
Does not Know any boundary.
It flies too high,
Being unsatisfied of the turpitude.
Wings are the wick of a constant flame,
Diving down into the deeper ocean,
keeps shining all around.
A bird of the deeper sky,
Does not know any boundary.
It smashes the gap between the earth and sky,
Infinite is the nest of the bird.
Eyes are the mirror of love,
Plunging into Silence,it reflects the love.
A Bird of the deeper sky,
Does not know any boundary.



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17 MAR AT 20:31

एक डब्बा बंद पड़ा है कोई वर्षों से,कोई दिनों से।
डब्बा खुलना चाहता है।
जो तुम ख़ोज रहे हो,वो डब्बे में बंद पड़ा है।
डब्बे की चाबी तुम्हारे हाथ में है।
चाबी तुम भुलाए बैठे हो।
क्या पता डब्बा तुम्हारे जरिए ही खुलना चाहता हो।।
डब्बा खुलेगी तो खजाने की आविष्कार होगी।
जितनी बार यह डब्बा खुला उतनी बार "तुम" मिटे।
तुम बस खोलो तो सही।
चाबी हाथ में लिए लिए भटक रहे हो चाबी की तलाश में।
क्या पता यही प्रेम हो,डब्बा आसानी से खुलेगी नहीं और
तुम आसानी से हारोगे नहीं🍁

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2 FEB AT 23:59

प्रकृति की धारा अनंत है,
समय की धारा लगातार बह ही रही है।।
अहम प्रकृति की तत्त्व में से एक है,
यह शरीर अहम की अस्तित्व का प्रमाण है।।
अहम केंद्र है तो मन उसकी परिधि,
रथी अहम है तो सारथी कृष्ण।।
अहम की धारा अनवरत बहती रहे
इसलिए प्रकृति अपनी नंगा नाच नाचती रहे।।
कृष्ण के बिरह में रोता है अहम,
नैहरवा की आस में कलप रहा है अहम।।
वर्षों से प्रेम की प्याला लिए घूम रहा है,
शीश लेकिन देने को राज़ी नहीं है।।
अहम ही है जब रास्ता तो
क्यों तोड़े उससे बास्ता?
सारथी संग है रथी का गहरा नाता
दोनों न हो तो कैसा यह रिश्ता?


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2 FEB AT 21:16

छबि और बास्तबिकता में क्या अंतर है?
तुम कुछ हो और तुम बनना कुछ और चाहते हो,
जो कुछ भी तुम हो,वो बास्तबिकता है तुम्हारी
और जो कुछ भी तुम बनना चाहते हो वो छबि है तुम्हारी।

बास्तबिकता पर छबि कब भारी पड़ता है?
जब तुम जो कुछ भी हो वो तुम्हें ज्ञात ही न हो।
तुम बीमार हो तुम्हें डॉक्टर चाहिए,और इसका तुम्हें भान नहीं,
और तुम घूम रहे हो इधर उधर पैसा इक्कठा करने।
अब आएगा मज़ा।
तुम्हें लग रहा है पैसों से तुम्हारी दर्द ठीक हो जाएगी,
लेकिन अंदर ही अंदर वो दर्द बढ़ता जा रहा है।
ये रहा छबि को अपने सर में बांधे रहने का सज़ा।
छबि वो है जो तुम दूसरों से पाना चाहते हो
बास्तबिकता में तुम वो हो नहीं जो ये अंधी दौड़ दौड़ रहा है।।
अपनी छबि से बाहर आइए जनाब।
गधा कहींका।।🤭

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6 JAN AT 19:41

ज्ञान और आदत में से कौन जीतेगा?
तुम्हें क्या लगता है?
ज्ञान जीतेगा?
गलत..
जब अभी तक आदत ही जीतता आया है तो अभी ज्ञान कैसे जीत सकता है वो भी तब जब बात पशु की हो।
क्या पशु को कभी ज्ञान समझ आई?
क्या पशु अपनी मन देह वृत्ति बासना को बाजू रख कर समझ पे जी सकता है?
तुम अभी क्या हो?
पशु।
पशु ही हो न?
तो पहले अपनी पशुता को अच्छे से देखा करो,
उस पर चौट किया करो,उसे रंगे हाथ पकड़ा करो
फ़िर कुछ बात बनेगी। अपनी बेबशी को स्वीकारो।
इंसान बनो तभी जाकर कुछ ज्ञान अंदर उतरेगी।।

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16 NOV 2023 AT 0:47

आसमां और जमीन क्या अलग हैं?
रोशनियों की चमक और अंधेरा की काली क्या अलग है?
बिबिध वस्तुएं और उनको देखने वाली यह आंख क्या अलग हैं?
चांद जो की सबसे सुंदर है और वृत्ति जिसको चांद सुंदर लगती है,क्या दोनो अलग हैं?
दिवाली की दिये और होली की गुलाल क्या अलग है?
चकमक करती हुई तन और उसकी चकमक को जानने वाली यह मन क्या अलग है?
क्या आप और मैं अलग हैं?
प्रकृति से निकला यह शरीर और प्रकृति से परे यह चेतना क्या अलग हैं?
"मैं" का भाव क्या हम सब में अलग हैं?
कौन हैं जो अलग या सम भाव को तय करता है?
कौन हैं जो किसी भी चीज़ के पैमाना का निर्धारक है?
कौन हैं वो?क्या वो हमसे अलग हैं या हमारे ही प्रतिरूप?

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6 SEP 2023 AT 2:46

रात भारी है
मन अस्वस्थ्य है।।
स्वस्थ मन की परिभाषा क्या?
चंद्रमा की शीतलता चारों और अभिव्यक्त है
वृत्तियां की उष्णता मन पर हावी है।।
मन को क्या होना है?
प्रकृति मन की प्रतिम्बिब है
अहम प्रकृति की उत्पति है।।
अहम से मन की क्या संबंध है?

मन कुछ चाहे तो प्रश्न उठे क्यों इतना चाह है
मन कहींको भागे तो प्रश्न उठे कहां जाना है

एक आखिरी प्रश्न किस आधार पे आश्रित तेरा जीवन गतिमान है?
क्या वो आधार बस प्रतीत मान है या सचमुच है?
मन की चाह और सारे गतिविधि इतना महत्वपूर्ण क्यों?




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28 MAR 2023 AT 21:46

जाना है दूर मुसाफिर,
अधिक नींद क्यों सोए रे,
सामने है मौत खड़ी,
व्यर्थ क्यों समय गवाएं रे,
हीरा जब पास है,
क्यों पूजे तू पत्थर रे,
हरी जब साथ तेरे,
डरा सहमा क्यों घूमे रे,
जाना है दूर मुसाफिर,
अधिक नींद क्यों सोए रे।।
जग जा,जग जा रे भाई, शुभह होने को आई रे,
रात थी काली गहरी,अभी भी मंजिल है बाकी रे।।

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