तुम सबसे अच्छे दोस्त थे मेरे..
तुम्हें कैसे समझाऊ , सबसे पहले थे तुम मेरे लिए...
ऐसा नहीं हैं कि तुम्हारी जगह किसी ओर ने लेली,
जो जगह तुम्हारी थी वो बस खाली है अब...
तुमने बताया मुझे कैसी हु में मैं,
सबसे अलग ओर थोड़ी बेपरवाह सी हूं,
हां माना थोड़ी इमोशनल हूं और कहानियां ज्यादा सुनाती हूं, तुम गुरूर थे मेरा ,
कुछ नहीं चाहिए था मुझे तुमसे दोस्ती के अलावा ,
पर तुम्हे शायद मोहब्बत हो गई थी मुझ से...
अब कोई नहीं आएगा हम दोनों के बीच
मैं अपनी दोस्ती की कहानियां सुनाऊंगी और तुम अधूरी मोहब्बत की...-
सुनो.....
तुम बस खुद को थामे रखना ,
बाकी सब को जाने देना...
जाने देना बस , रो कर बिलख कर रोकना मत..
और जब वो जाए ,तो मुड़कर देखना मत,
पीछे से आवाज देना मत, उसे रोकना मत,
अगर मिल जाए कभी रास्ते में तो नज़रे उससे मिलना मत
और....
और तुम किसी के लिए व्यर्थ आंसू बहाना मत...
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कच्चे धागों से बंधा पक्का रिश्ता है हमारा...
तू भाई , मित्र , सखा हमारा..
तू है तो जैसे है हवा , दवा ,दुआ, तुझ से मुझ में जान है
तेरे होने से जैसे पतझड़ में बसंत हैं....
जो हो जाऊं मैं मायूस ,तू उदास हो जाता है
मेरी खुशी के लिए तू कुछ भी कर जाता है..
तू मान है मेरा , सम्मान ,अभिमान है मेरा ..
हुं खुशनसीब जो है तू है यहां ओर भ्राता हैं मेरा ...
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अगर मगर से लेके काश के सफ़र में हु,
जग से अंजान मैं खुद की खोज में हु,
अपने हालातों के लिए लफ्ज़ नहीं हैं
मैं जो कभी चहकती थी , अब ज़रा शांत सी रहने लगीं हु,
बहुत ख़ास हुआ करती थी,अब आम सी रहने लगी हूं,
सितारों भरे आसमान में चांद को ढूंढती हूं
शायद अकेले मे खुद में खुद को ढूंढती हूं,
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"यूँ ही नहीं मिलते हैं कुछ सवालों के जवाब, मुर्शिद...
कभी आना फुर्सत में, फुर्सत लेकर...
हम बताएँगे कुछ जवाब — जो किसी सवाल के नहीं होते।"
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ना पूछो हमसे क्यों इतना शोर हमारे अंदर हैं,
यहां कुछ बूंदे नहीं , एक गमों का समंदर हैं
यूं तो जीत के जशन हमने भी बहुत मनाए हैं
पर सच तो ये है , हम खुद से हारे हुए शिकंदर हैं-
ना तो मुझे अब खास बन ना है
ना ही मुझे एहसास बन ना है
ओर वो सब तो बिल्कुल नहीं सुना ना,
जो मेरे कहने पर सुनाते हो...-
तेरे चेहरे का ये ग़म तुझ पर जचता नहीं,
हां ये भी सच हैं मेरे अलावा तुझे कुछ जचता नही...
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जो तू समन्दर है तो मैं पानी सा
तू है अगर नांव तो मैं तेरा मांझी सा
अगर इतना सब ज्ञात होने के बाद भी,
तुम ना समझ पाओ मेरा मौन और व्यथा..
तो मेरा गलत सिद्ध हो जाना ही उचित है....
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खूबसूरती इतनी की लोग दीदार को तरसे, सब्र इतना की उनके सिवा किसी को दीदार ना दूँ श्रृंगार इतना है, की अप्सराएँ भी दुहाई दें, और सादगी इतनी की सिर्फ सुरमे से कहर ढा दूँ
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