इक़रार से हूं,इंकार सा हूं
यादों में डूबी मंझधार सा हूं
तारीफ में तेरी और लिखू मैं क्या
मैं शायर एक बेकरार सा हूं।-
यदि लक्ष्य सर्वोपरि हैं,तो.......
आलोचना, विवेचना और प्रशंसा मायने नही रखता हैं।-
इस एक खयाल ने उलझा दिया हमें
की तुम्हें ना सोचते हम तो क्या सोचते।-
तुम साथ दो तो गलत साबित करूं उन सब को
जो कहते है की कोई हमेशा साथ नहीं निभाता।-
जो दिल में रहते हैं वो साथ रहते अगर
तो शायद ये ज़िंदगी इस कदर ना बिगड़ती।-
मुझे नहीं मतलब कौन किस के साथ कैसा है,
जो मेरे साथ अच्छा है वो मेरे लिए अच्छा हैं।-
तु मुझे कभी मिलेगा या नही मुझे खबर नही ,
मगर तेरे ख्यालों में रहना अच्छा लगता हैं
तुझे देखते रहने में मेरी चाय ठंडी हो जाती हैं अक्सर,
मगर तुझे देखते रहना अच्छा लगता हैं
तु इस बात से रहा हमेशा से बेखबर,
मगर लोग मुझे जब तेरा कहते हैं तो अच्छा लगता हैं
तेरे दिल की हकीकत से नहीं वाकिफ मैं,
मगर मेरे दिल को तेरे नाम पर धड़कना अच्छा लगता हैं।-
एक तुम हो जिसे फुरसत नहीं मिलती गैरों से
एक हम हैं जो हर किसी से किनारा किए बैठे है।-
मैं लिख तो दूं तेरा नाम अपनी शायरी में मगर
हर शख़्स तुझे जान ले मुझे ये गवारा ही नहीं।-
वो नूर है उसे देखकर बस एक भरोसा ही नज़र आता है आँख लगते ही बस एक उनका चेहरा ही नज़र आता है हाये ये अजब उल्फत ऐसी है मुझे कुछ और दिखता ही नहीं चाँद निकलते ही बस एक उनका चेहरा ही नज़र आता है...
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