Istkhar Rao   (इस्तख़ार "साहिल")
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मैं ज़िन्दगी के रंगमंच का वो रंग हूँ
किरदार जिसका तुमसे निभाया ना जायेगा
@साहिल
Joined 1 November 2018


मैं ज़िन्दगी के रंगमंच का वो रंग हूँ
किरदार जिसका तुमसे निभाया ना जायेगा
@साहिल
Joined 1 November 2018
26 MAY 2021 AT 19:45

ना में चंगा ना तू चंगा ना ही कोई चंगा
पॉलिटिक्स की दलदल में यहां हर कोई नंगा
ढूंढ रहे है टोर्च उठाये कमिया इसकी उसकी
ख़ुद में भी तो ढूंढ लो भैया कोई बिल्ला रंगा
पप्पू पप्पू दीदी दीदी हर कोई चिल्लाये
दिखना है अखबारों में बस लेकर ऐसे पंगा
छीटाकाशी के दलदल में दाग सभी पे आये
टांग खींचनी है कैसे भी दे दो एक अड़ंगा
एक छोटी सी फुरकी भी रखती है ऐसी ताकत
बाज़ारो में हो जाता है उससे देखो दंगा
विश्वगुरु है कौन बना कैसा है अतुल्य भारत
शर्म से झुका हुआ है देखो मेरी शान तिरंगा

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23 MAY 2021 AT 10:00

जहा आवाज़ ना जाये वहां ज़मीर जा बैठा
वंहा इतनी ऊंचाई पे मेरा अमीर जा बैठा
नही है कुछ हूँ फटेहाल यही बोल बोलकर
यंहा कब्रो पे लाशो पे मेरा फकीर जा बैठा

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22 MAY 2021 AT 22:44

पहले गया था होश ओर फिर फिकर गयी
इतने मिले है ज़ख्म की तबियत निखर गयी
उम्मीद की तलाश में यूं छटपटाये हम
डर कर चलाये हाथ तो मरहम बिखर गयी

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18 MAY 2021 AT 23:48

एक बार उनको हमने अपना दिल क्या दे दिया
बस उम्र फिर गुजारी है खुद को समेट कर
सीने से लगाया हमे ओर कर गये तन्हा  
हम रह गये रोते हुये ख़ुद को लपेट कर

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16 MAY 2021 AT 17:32

है अंधेरा हर तरफ परछाइयों का शोर है
खौफ है तो क्या हुआ दीपक जलाना छोड़ दे

हाँ हमे मालूम है लहरे मिटा डालेगी सब
मिट्टी है तो क्या हुआ घर को बनाना छोड़ दे

चार पल की खुशियां जीने का सहारा जब बने
क्यों नही फिर ऐसी यादो को भुलाना छोड़ दे

डूबते को है सहारा तिनके का कहते है ये 
किस लिए उम्मीद का दामन बढ़ाना छोड़ दे

मौत तो आनी है एक दिन आएगी ले जायेगी 
इसका मतलब ये नही जीना जिलाना छोड़ दे

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11 MAY 2021 AT 0:07

ना जान सका कोई दर्द मेरा
नींदों में अक्सर रोता हूँ
रोटी ने किया मजबूर मुझे
ना जागता हूँ ना सोता हूँ

एक एक पल बीते सदियो सा
तन्हाई के साये हँसते है
मेरा अक्स भी अक्सर शीशे से
कब लौटेगा ये कहते है

वो माई मेरी दरवाजे से
सूनी आंखों से तकती है
हर लफ्ज़ बयाँन ये करते है
मायूस मेरी माँ दिखती है

वो जान मेरी मेरे पास नही
बिन जिसके जान अधूरी है
मेरे पास है जो मेरे सीने में
ओर दुनियाभर की दूरी है

मासूम सा वो मेरा टुकड़ा है
कहने को मेरे करीब लिखा
ऊपर वाले किस स्याही से
ये कैसा मेरा नसीब लिखा

है कौन यहां गैरो में कोई
मेरी आह को देखने वाला है
जाना है मुझे, मेरे घर पे कोई
मेरी राह को देखने वाला है

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9 MAY 2021 AT 23:09

मन की बातों के देखो बतेले लगे है
ऐसा लगता है सर्कस है मेले लगे है
आये दिन देखने को है जुमले नये
रंग बिरंगी है वादों के ठेले लगे है

चौकीदारी की मेहनत से चोरी भी की
सूट डाले फ़कीरा ने सीनाज़ोरी भी की
लंबी ढाढ़ी को ऱखना भी आसाँ नही
पोछते माथा साहब थकेले लगे है

वक़्त वो भी था, था साथ मे हर कोई
क्या बने, आ गया जात में हर कोई
हाथगाडी बना डाली ये ज़िन्दगी
खुद को देने में धक्का अकेले लगे है

ताली थाली बजाओ मोमबत्ती जलाओ
मौत पे अपनो की आओ खुशिया मनाओ
कब्र हो या चिता बट रहे है टिकट
हर तरफ देखो लाशो को रेले लगे है

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2 MAY 2021 AT 21:49

मौत की खुशियां मनानी हो गयी है
रोजमर्रा की कहानी हो गयी है
क्या मुकद्दर में लिखा लाये क्या जाने
चार पल की ज़िन्दगानी हो गयी है

हर गली कूंचा है खाली वहशियत है
हर तरफ कैसी वीरानी हो गयी है
मैं कहा जाकर के अपना सर छुपाऊँ
मौत जब सबकी दीवानी हो गयी है

नोचना गिद्धों की तरह ज़िंदा मुर्दे
इंसानियत की अब निशानी हो गयी है
थे कही इंसान बाकी इस जहां में
बात भी अब ये पुरानी हो गयी है

सामने जाकर के किसके गिड़गिड़ाये
ना रही कोई शर्म पानी हो गयी है
रोटी नही कपड़ा नही पानी नही है
बेकार बाते ये बतानी हो गयी है

कानो में है उंगलिया आँखों पे पट्टी
सरकार मेरी अंधी कानी हो गयी है
ना रहे अल्फ़ाज़ बाकी बोलने को
कलम भी अब बेज़ुबानी हो गयी है

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26 APR 2021 AT 21:34

दिल मे है परेशानी कितना मत पूछो
दिल की है नादानी कितना मत पूछो

खुद से बढ़कर अपना तुझको माना था
तूने की बईमानी कितना मत पूछो

रफ्ता रफ्ता तूने कितना तोड़ा है
आंखों में है पानी कितना मत पूछो

अंदर अंदर सब कुछ टूटा टूटा है
रूह लगती अनजानी कितना मत पूछो

हँसना रोना खाना पीना भूल गये
सब लगता बेमानी कितना मत पूछो

पन्ने समझ के आग लगा बैठे जिनको
किस्मत की थी कहानी कितना मत पूछो

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23 APR 2021 AT 4:42

वो कहते है कि हमने पत्थर तो तराशे है

बेकार ही लोगो मे बेकार हताशे है

इतना किया मुकम्मल हर एक दिलासे को

हर ओर चिताए है हर ओर तो लाशें है

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