कभी पत्थर की ठोकर से
कभी चाहत कि ठोकर से,
कभी ये दिल भी टूटा है
कुछ उम्मीदो कि ठोकर से।।
मैं रातो को भी जागी हू
कभी दिन भर ही सोई हूं,
मै खुद से ऐसे भागी हूं
कि सपनो मे भी रोई हूं।।
निहारो आँख तुम मेरी
लबों मे क्या हि रखा है,
मेरी पलकों से पूछो तुम
कि वारिद कैसे बरसा है।।-
poetess
अपने किरदार को अंजाम देती
मै इक अदाकारा हूं,
जीवन की आड़ मे
हयात कि लालसा करती हूं।-
सुकून-ए-सब्र मिलता है
मेरे लिखे इन पन्नो से..
रहेंगे लफ़्ज़ जिन्दा ये,
अगर मैं मर भि जाऊं जो।-
main tumhe manau bhi toh kaise
ye hakk mujhe tumse mila hi nahi🥺-
नाराजगी तो बड़ी दूर कि बात है
हमें तो तुमसे कोई उम्मीद भि नही है।
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किस्से मेरी उल्फत के जो
मरकूम हैं सारे..
आ देख तेरे नाम से
मौसूम हैं सारे..
शायद ये जर्क है जो
ख़ामोश हूं अब तक ,
वर्ना तो तेरे ऐब भी
मालूम हैं सारे..
सब जुल्म मेरी जात से मन्सूर हे ऐसे
क्या मेरे सिवा इस शहर में
मासूम हैं सारे ।।?
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ना ही इस मे राजा है
ना ही कोई रानी
कुछ इस तरह से होगी
मेरी लिखी कहानी
सपनो की दुनिया से आई
लड़की वो बेगानी सी
खुद ही खुद मे रहने वाली
पागल सी दीवानी सी
दुनिया से वो जीतने वाली
खुद ही खुद से हारी थी
औदा उसका अगद नही
वो मां की राजकुमारी थी
हमदर्दी रखी थी जिसने
पेड़ो और पहाड़ो से
आसमान मे चमक रही वो
टूटे हुए सितारों सी ।।-