Ishita Sharma   (Ishita sharma)
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Joined 20 October 2017


Joined 20 October 2017
10 AUG 2023 AT 0:07

दिखने लगे जो रास्ते धुंधले,
तो लौट जाना चाहिए,
उठाकर यादों के खजाने को मुस्कराना चाहिए,🥰
जो जी लिया उन लम्हों पर गुमान कर,
बेकार बातो को सोच, न खुद को परेशान कर
अकेले चलना सीख,न किसी हाथ का मोहताज बन,
ये ज़िंदगी है तेरी,अपने अनुसार चल।।❤️

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22 AUG 2022 AT 19:07


देनी हो कोई खुशी मुझे, तो शब्दों में तोल देना
तुम्हारे टूटे - फूटे शब्द मैं खुद जोड़ लूंगी,
तुम बस बोल देना,
मुझे श्रंगार से लगाव नहीं,
तुम मेरी सादगी को मोल देना।।
खुश रहती हूँ वैसे तो बहुत
मगर जब रोऊ तो बस रुमाल खोल देना,
अगर मुझे जानना हो ज्यादा,
तो मेरा हाथ पकड़ पहाड़ों पर चलना,
खुली हवाओं की ताजगी, घास की
नमी, बहता पानी देख मेरी
खिलखिलाहट को सुनना।।
मेरी आंखों में हर वक्त बहते जो,
इन शब्दों को सुनना,
भटक जाऊं जो रास्ता कभी,
तो हाथ पकड़ मेरा रास्ता चुनना,
मेरी तो बस इतनी सी ख्वाइसें है,
हो सके तो पूरी करना।।
और हां तुम्हारी तो जिम्मेदारी मेरी है,
उसकी चिंता तुम मत करना,
तुम बस हाथ थामे रखना।।❤️

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30 MAR 2022 AT 19:50

कुछ वक्त के लिए,वक्त को रोक लिया है इन आंखों में,
अब ये कोई नया नजारा नही देखती,
ख्वाब तो देखती है,मगर ख्वाइशों का सहारा नही देखती,
बीते वक्त में रहना भी चाहती है,
हवाओ सा, नदियों सा बहना भी चाहती है,
खुद में गुम सा रहना चाहती है,
ये आंखें लगती है ....
जैसे कुछ कहना चाहती है।।

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6 FEB 2022 AT 19:05

दोनों बाहें खोल इस सर्द हवा में,
दूर अकेले बस चलते जाना है...
ना किसी की परवाह ,ना कोई ठिकाना है।
खुशी झलकती है आंखों से,
जब भी ये ख्याल आता है...
दूर कही अकेले हवाओ के साथ ये मन उड़ता जाता है,
उस शाम के अंधेरे में भी दिल की चमक से,
जब चहरा जगमगाएगा
दिल फिर एक बार ख्वाबों में ठहर जाएगा।।— % &

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29 JAN 2022 AT 21:13

दो कदम बढ़ाए ही थे,
हवाओ ने अपनी ओर खीच लिया..
बिन बुलाए ही पुराने वक्त ने अपनी ओर भींच लिया..
मैं माथे पे सिकन,
दिल में सवाल,
आंखों में सैलाब लिए चले जा रही थी..
मैंने वक्त के साथ बहुत कुछ बदल लिया,
कुछ जगह अब अपने सपने, अपने अपनो को भी मोल दिया,
यही बाते तो ज़माने को खलती है,
कल तक जो सहन किया,
वो आज क्यों बोल दिया।।।।

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21 JAN 2022 AT 23:56

लिख रही हूं,अंजाम सारे..
कल जब पूरे होंगे तो इंतकाम देखना,
बुने है जो ख्वाब मैंने,
होंगे पूरे,सारे ख्वाब देखना...
छोड़ रही हूं कुछ जवाब,
उठेंगे कल जिसपे सवाल देखना,
और आज सफ़र मे हूं तो क्या,
वक्त आने दो,
मंज़िलो पर मेरी उड़ान देखना...❤️



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21 JAN 2022 AT 23:06

सारे सवाल भी उसके, जवाब भी उसी के रहे,
मेरे अधर तो मौन ही थे,वे तो चुप ही रहे......

सोचते रहे , बिन गुनाह की भी माफी मिलती हैं क्या,
अपनी छोड़,बस दूसरों की ही क्यों गलती दिखती है यहां....

क्यूं भरे बाजारों में जज्बातों की बोलियां लगती हैं ,
किसी हथियार की ज़रूरत नहीं, यहां शब्दों की गोलियां चलती है।।।।

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31 OCT 2021 AT 23:39

वक्त से लेकर मोहलत ,शाम तले जाना गंगाघाट कभी,
उसकी खूबसूरती ,और जगमगाहट से
हो ना जाना बेचैन कहीं,
आंखें बन्द कर, वहां की हवाओं को महसूस करना।।
जो उठे लेहरे गंगा की, तुम गहरी सांसें भरना,
आरती की गूंज,घंटियों की धुन,
करके शीतल मन, और देदे जो रूह को सुकून।।।
दिखती ज़रा सी दूर,शिवजी को प्रतिमा है,
लहरों का उठता पानी,सुकून का करिश्मा है,
लहरों पर पड़ती जो मंदिरों की रोशनी है,
दुनिया में ऐसी बहुत कम ही खूबसूरती है,
थामकर खुद को बैठ जाना दो पल वहीं,
दावा है मेरा, लेकर जाओगे ज़िन्दगी भर के सुकून सभी।।।।

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31 OCT 2021 AT 23:30

शब्दो से पाक मैंने कुछ पाया है नहीं,
एहसासों को बस लिखा,कभी जताया ही नहीं,
लिखे है जो चंद शब्द डायरी में,
अभी तो किसी महफ़िल मे सुनाया ही नहीं,
और जिसको सुनाया,
उससे बढ़कर किसी को अजीज पाया ही नहीं।
एक एक शब्द के साथ मै सुकून पाती हूं,
थामती हूं,अपनी कविताओं का साथ,
जब इन्हें डगमगाता पाती हूं,
मै अपनी इन्हीं रचनाओं के सहारे,
ना जाने कितने ख्वाबों को हकीकत में जी जाती हूं।।
मै हर लफ्ज़ पूरे दिल से पिरोती हूं,
रात भी शाक्षी है इस बात की,
मै रोज़ अपनी नज़्मों को पढ़कर सोती हूं।।।।

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31 OCT 2021 AT 23:22

खाली मन, कभी कभी हमें खंगालता है,
शांत पड़े जैसे बस हमे निहारता है,
कुछ कहना चाहता है,
नदियों का पानी जैसे बेहना चाहता है,
बिना डोर के उड़ना चाहता है,
किसी ऊची मंज़िल पर ठहरना चाहता है,
फूल, मिट्टी की खुसबू से महकना चाहता है,
ये दिल अब कहीं ठहरना चाहता है।।

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