जो बीत गया उस पर सवाल करूँ, या मलाल करूँ..माना आगे बढ़ने का नाम है ज़िंदगी, मगर कैसे अपने मन को शांत करूँ!
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नया तो कुछ नहीं, बस कुछ दबे जज़्बात लिख रही हूँ..ऐसा ही समझ लीजिए कि अपनी बेबसी को पन्नों पर बयाँ कर रही हूँ ।
बेशक हँसती मैं रोज़ हूँ, मगर मुकम्मल मुस्कान अब भूल गयी हूँ..रोज़ मिलती कई चेहरों से हूँ, मगर शायद खुद को कहीं खो आई हूँ।
दिन गुज़र जाता है बस यूँ ही पहेलियों में..और गम नहीं होता अब अकेले रहने में ।-
लोग कहते हैं, कि मैं बहुत बोलती हूँ..मगर न जाने क्यूँ खुद को मैं अक्सर शाँत पाती हूँ..बहुत सी लहरें मन में रोज़ उठती है मुझसे कुछ पूछने..जवाब में उन्हें बस चुप्पी ही दे पाती हूँ!
बहुत गहराई में जाके अक्सर खुद को ढूंढती हूँ, मगर खाली हाथ लौट आती हूँ..कुछ दबा सा है मन में, जो किसी से ना कह पाती हूँ..हाँ, एक उलझी सी पहेली हूँ मैं, जो खुद से भी ना सुलझ पाती हूँ!-
जवाब जो सुना उनका, यह दिल जैसे थम सा गया..क्या कमाल खेला आपने लफ्ज़ों से, कि हर लफ्ज़ एक उम्मीद जगा गया!
आज जब पुरानी रातें याद आती है, आपके हर लफ्ज़ के पीछे छिपे झूठे जज़्बातों का अहसास दिलाती है!
यह दिल मांग लेता है इन आंखों से माफ़ी, हर याद इन्हें रुला जो जाती है!-
I started staying Happy less,
because you found your Happiness somewhere else..
Time has changed, so have you..
I tried changing too,
but still stuck on You!
How could you be so chill....
I wish I could be "Happy" again, but seems like my life is now STILL.-
जानते हैं तुम्हारी ज़िंदगी में कोई जगह नहीं है हमारी, मगर फिर भी "उस वक्त" से मोहब्बत करते हैं..साथ हम आज भी नहीं है, मगर गुज़रे वक्त के सहारे हम अपने "आज" को जी लेते हैं ।
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समझते है, मगर समझाना छोड़ दिया है..कुछ अपने समझ जाते हैं, बाकियों को मनाना छोड़ दिया है। मोहब्बत सबसे करते हैं, बस अब दिल लगाना छोड़ दिया है, हंस कर बात सबसे करते हैं, और अकेले में रोना सीख लिया है।
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सुना था मोहब्बत दूरियों की मोहताज नहीं होती..कश्मकश हो कैसी भी, रिश्तों में दीवारें नहीं होती!
तुम नहीं आते, पर तुम्हारे खयाल रोज़ दस्तक देते हैं, आंखें नम तो होती है पर हम फिर भी मुस्कुरा देते हैं।
माना कि अब रिश्ते बदल गए हैं, "जान" से हम "अNJAAN" बन गए हैं..मगर आज भी हमारे प्यार में गहराई कायम है, मिज़ाज सख्त पर कही-ना-कही हम आज भी मुलायम है!
पल में रिश्ते तो तुम जोड़-तोड़ गए थे, हम तो आज भी अपने उसूलों पर कायम हैं!-
आज फिर जीत का जश्न मनाना, की तुम बहस जीत गए..हम यहां संतुष्टि के जाम लगाएंगे की हम रिश्तों को संभाल गए!
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बुझ गये हैं वो अहसास जो कभी शोला बन जलते थे..थम गए हैं वो झोंके जो तूफ़ान बन बरसते थे! ली है हर जगह अंधेरे ने की रोशनी होकर भी बहुत कुछ धुंधला सा है..कहने को तो मुकम्मल है सब, मगर शायद अब भी कुछ अधूरा सा है!
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