क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो.. अब वफादारी की कसमें तो नहीं खाएगा वो.. हम समझते थे कि हम उसको भूला सकते है ! और वो समझता था हमें भूल नहीं पाएगा वो.. कितना सोचा था पर इतना तो नहीं सोचा था ! याद बन जाएगा वो, ख्वाब नज़र आएगा वो.. सबके होते हुए एक रोज़ वो तन्हा होगा ! फिर वो ढूंढेगा हमें... और नहीं पाएगा वो !!!
वक्त ने अक्सर खुद को दोहराया है... हर बार इसने मेरे धर्य को आज़माया है। पूरी रात परेशानी थी... दीवारें तकती रही , सन्नाटे का शोर था शायद.... आंखे बस सुनती रही।
बातें पूरी कर लेनी थी , अधुरी रह गई तुमसे शायद .... वादे साथ रहने के पूरे थे , राह अधूरी रह गई शायद .... जी ही लेना था आज मैंने , कल सुबह आंख बंद रह गई तो शायद .... गिले सिक्वे क्या ही रखे किसी से , अगली मुलाकात ना हो तो शायद .... आगाज तो खूबसूरत थी , सफर तो सफ़र की थी शायद ....