रात की दुनिया
दुनिया में खोया इक चाँद
चाँद की मर्जी
मर्जी ही उसकी जुबान
जुबान की बातें
बातों का जहान
जहान के पीछे इंसान की आन
आन ना जाने रुतबा पैसा
पैसा का तो खेल ऐसा
ऐसा जैसे ये मदारी
मदारी नचाए दुनिया सारी
सारी दुनिया की खामोश रात
रात की दुनिया
दुनिया की बात
बातों के चलते खोया
खोया इक नायाब चाँद-
कोमल हृदय तुम्हारा,
ये सह पाएगा क्या?
खोया जो सपनों को,
फिर से देख पाएगा क्या?
नहीं आती रास ये दुनिया,
वो अपनो कह पाएगा क्या?
धुल गए जो कुछ लिखा,
वापस वही लिखने की चाह ला पाएगा क्या?
निकल गया अब जो वो नई डगर पर,
अब लौट पाएगा क्या?
बन चला है वो मुसाफ़िर भेजा अपनो ने ही,
वापस घर आने का विचार छोड़ पाएगा क्या?
बताओ ना कोमल हृदय तुम्हारा,
ये सह पाएगा क्या?
अपनो के खातिर, अपनो से ही दूर रहकर,
खुद की खुशी दांव लगा कर रह पाएगा क्या?
कोमल हृदय तुम्हारा,
ये सह पाएगा क्या?-
Rab hi jaane kya baat huyi,
Aankho se aankhe mili or
Nayi dastan huyi,
Mahakal ke naam se shuru huyi,
Mahakal ke sath se khili or
Mahakal ke ashirwad se phalti huyi,
Humari kahani logo me jag jahir huyi,
Pr phir bhi sirf hum me hi samayi huyi....-
दबे हुए जज़्बात, घुटते हुए हम,
ज़िंदगी के सफर में दम भरते हम।
विचारों में उठाव, बातों में रुकाव,
कुछ भी बचा कहा, बस जीवन लेता सुखाव ।
चाहे प्यार हो या हो दर्द, सब कैसे छुपाए हम?
आखिर ज़हान के खोखले जज़्बातों से कैसे बचाए हम?
इसके चलते घुट रहे हम,
दबे हुए जज़्बात जो ले हमारा दम।
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जिंदगी के बाद, मेरी अर्थी के पास कुछ पलों के लिए आओगे क्या?
जब रोएंगे सब मेरे निर्जान शरीर पर , तुम मेरे मोक्ष की खुशी मनाओगे क्या ?
सब याद करेंगे कितना प्यार करती थी मैं उन्हें पर,
तुम मेरे अजीवित मुख को मेरी याद दिलाओगे क्या ?
मौत के बाद आसपास बातें सब करेंगे पर,
तुम मुझसे वैसे ही अंतिम बार बतियाओगे क्या ?
घेरें होंगे मुझ को अंतिम पलों में जब ये बेबुनियादी रिश्ते,
तुम मुझे खुद का दोस्त बता कर मिलने आओगे क्या ?
मेरी अंतिम यात्रा जिसकी मैं अकेली यात्री रहूंगी पर,
तुम उस यात्रा में कुछ पल साथ बिताओगे क्या ?
जिंदगी के बाद मेरी अर्थी के पास,
कुछ पलों के लिए ही सही पर...
तुम आओगे क्या ?-
बंदेया क्यों लिखता तु अपनी कहानी हैं?
तेरी आंखों से सिर्फ बहता अनदेखा पानी है,
जब देखनी दुनिया मां-बाप के हिसाब से है,
तो क्यों भगवान दिखाई यह दुनिया अनजानी है ।
बोल बंदेया क्यों लिखता तु अपनी कहानी हैं?
तेरी सोच जब सिर्फ सोच रह जानी है,
जब हमारी सोच विचार मां-बाप के हाथ की कारस्तानी है,
तो क्यों भगवान दिमागी ताकत थी जो सिर्फ मेरे अंदर दब जानी है ।
— % &बोल बंदेया क्यों लिखता तु अपनी कहानी हैं?
तेरी इच्छा-सपने सिर्फ बातों का किस्सा है,
जब आज से कल मां-बाप की ही हाँ का हिस्सा है,
तो क्यों भगवान ये दिल दिया जब यह जीवन सिर्फ कठपुतली की कहानी है।
बोल ना बंदेया क्यों लिखता तु अपनी कहानी हैं?
जब हमारी जिंदगी पर मां-बाप को अपनी हुकूमत चलानी हैं ।— % &-
मेरे दिन अँधेरो से भरे,
मेरी रातें सुनहरी धूप में खिली,
कोई चाँद पर सवार,
लेकर आया अपने शब्दों का भंडार,
तो कैसे चुप रहे हम हर रात,
कैसे ना खिले ये राते हर रात।-
बहुत समझाया लेकिन
ये बावरा मन समझ ना पाया ।
क्षणिक बन्धन पर खुद को
मैंने जीवन बसाते पाया ।
चिर काल से शांत मन को
किसी राही के लिए व्याकुल पाया ।
सच बहुत समझाया मन को
लेकिन प्रेम क्षणिक है या अनंत,
मन समझ ना पाया ।-
People are not black and white.
They are shades of grey,
Some are darker some are light.-