संसार में जीवन जीने का सलीका यही है
जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो ।-
Ambitious
🎨 📚 uttarakhndi
शायर तो नही मैं शब्दों की नन्ही जान हूँ पंखो की नही कल... read more
काश!दीदार ऐ इश़्क मेरा भी चाहता कोई
रुहे आरजू मैं किसी की तो होती ।।-
शब्दों का ये खेल प्रिये
बनता जिससे हैं मेल प्रिये
जीवन में अनमोल विचार
शब्द ही करते खेल प्रिये
जिन्दगी का ये सार निरुपण
आशा निराशा का रहे समर्पण
नित्य नवीन ऊर्जा का बोल
शब्द बनाते जीवन अनमोल
मीठे बोल प्यार के ,बोले जो दिन रैन
सरल सुगम अनुभव से,पाये जो हरपल चैन
आइने के आगोंश में, शब्द ही देते मोल
प्रतिक्षण प्रतिपल पाओंगे,बोओगे जो बोल
शब्दों का ये खेल प्रिये
बनता जिससे हैं मेल प्रिये ।।
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साबरमती के संत
मानव नहीं मानवता की भाषा
सागर की बूँदे तर जाता
खूद की खोज करे जो प्राणी
दूसरो का सदा हित ही चाहता
महिला का सम्मान सीखाया
बापू ने जो पाठ पढा़या
विचारों का पुतला हैं प्राणी,
जैसा सोचे वैसा बन जाता
दुनिया में अगर राज है करना
विनम्र स्वभाव सदा ही धरना
शरीर नहीं शक्ति बल पाता
अदम्य साहस ही शक्ति बल पाता
अभ्यास निरंतर करते जाओ
भविष्य को सुखद बनाओ
साबरमती के संत हैं बापू
सत्य, अहिंसा का पाठ पढा़या
धैर्य, तपस्या धरते जाओ
जीवन को तुम सफल बनाओं
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असल प्रेम की सत्य प्रतिष्ठा वृद्धावस्था ने पाई है
थरथराती हाँथों से जब कपकपाते नैन मिलाई है
उस इश़्क की करती बात प्रिये, जो जिस्म नहीं रूहों का साथी है
वो बोल अमर कर जाते है जो वृद्धावस्था पाते है
प्रिय की प्रिया बन पाँऊ, मैं भी वहीं अभिलाषी हूँ
सत्य,सहयोग व अपने पन में वृद्धा सहपाठी बन पाँऊ।।-
असल प्रेम की सत्य प्रतिष्ठा वृद्धावस्था ने पाई है
थरथराती हाँथों से जब कपकपाते नैन मिलाई है
उस इश़्क की करती बात प्रिये, जो जिस्म नहीं रूहों का साथी है
वो बोल अमर कर जाते है जो वृद्धावस्था पाते है
प्रिय की प्रिया बन पाँऊ, मैं भी वहीं अभिलाषी हूँ
सत्य,सहयोग व अपने पन में वृद्धा सहपाठी बन पाँऊ।।-
हिंदी
दिवस दिन बार है, मेरी बहन ये हिंदी
प्रत्येक जनजीवन के,आनंदमन है ये हिंदी
वेद पुराण महान कहावत ये जन मन हिंदी
मानव मन मनुष्य और मानवता,करती बयाँ ये हिंदी
चंचल,चारुता,चपलता से हो बयान ये हिंदी
नर,नारी आधुनिक जन-मन,करत बेहाल ये हिंदी
बीच मझदार खडे़ सभी,शान से परेशान है ये हिंदी
बचपन बोल प्यार का आनंदमन करती है हिंदी
स्मरण न रहें ऐसा नहीं ये राग है हिंदी
अनन्तकाल से ऋषियों की पुकार है हिंदी
मन मानव मनुष्य मानवता, करती बँया ये हिंदी
आदि से अंतमयी,नहीं बिन जहान ये हिंदी ।।-
मान लिया मैनें हम अजीज नहीं तुम्हारे,
लेकिन मोहब्बत मेरी कुछ दिनों की मोहताज तो न थी।याद तुम्हें हम रहे न रहे गम नही,शक्सियत तुम्हारी मोहब्बत की कर्जदार तो न थी।।-
शिव और शक्ति को जानो एक
नित्य कर्म करते रहो,शिवमयी हो अनेक
अपने और अपनों का साथ रहे,महादेव के भक्तों
पे महादेव का हाथ रहे।।-