Isha   (Nitisha ✍️ 🌷)
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Joined 23 June 2020


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Joined 23 June 2020
23 OCT AT 0:31

तुम वो आईना, तो एक अक्स हूँ मैं,
तुम वो गजल, जिसका हर लफ़्ज़ हूँ मैं,

तुमपर लगे खरोंच, तो वजूद मेरा मिटेगा,
तुमसे जुदा संगीत, तो मुझे कौन सुनेगा,

तुम्हारे जो घाव, वो नज़र तो आएँगे,
अक्स के मगर तुम में टुकड़े हो जाएँगे,

नया कोई अक्स तुममें जगह पा जाएगा,
टूटा वो अक्स पर कभी पूरा न हो पाएगा।

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22 OCT AT 23:52

मशरूफ रहने का शौक तुम्हें
तन्हा न कर दे ग़ालिब,
रिश्ते फुर्सत के नही तव्वजो
के मोहताज होते हैं।

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22 OCT AT 23:40

ग़म ए महताब है कि तनहाइयों में पलता है,
फिर भी जानिब ऊँचाइयों में तो पलता है,

ग़म ए कँवल है कि कीचड़ में गढ़ता है,
फिर भी जानिब महज़ इबादत में ही पड़ता है,

ग़म ए गुलाब है कि काँटों में छिपता है,
हर हुस्न ए जश्न का मगर सबब तो बनता है,

ग़म ए जमीं की मगर इंतहा ही नहीं कोई,
अपनी ही ख्वाहिशों के कारण जानिब
हर शख़्स हर तरह से वार तो करता है।

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16 OCT AT 16:27

to make me believe that
Until death, all defeats are psychological.

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15 OCT AT 23:58

मिल जाएँगे हमारी भी तारीफ़ करने वाले,
कोई हमारी मौत की अफ़वाह तो उड़ाए।

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15 OCT AT 5:21

Accepted the pain and enjoyed the gain,
Separated the guilt that washed away in rain.

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13 OCT AT 0:45

हाथ की लकीरें भी कितनी शातिर हैं,
हमारी मुट्ठी में तो हैं पर क़ाबू में नहीं।

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12 OCT AT 17:26

त्याग का अभ्यास करो,
मोह का असर समाप्त हो जाएगा।

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12 OCT AT 0:25

किसी भी उम्र में हो सकती है मुकम्मल मुलाक़ात,
मेरे हिस्से की मोहब्बत बचा कर रखना।

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11 OCT AT 22:49

दो पल में हो जाती है
जो आसां सी मोहब्बत,
ज़िंदगी लग जाती है उसे
इश्क़ करार देने में,

तपती है बढ़ती है फिर
वो हिज्र की आग से,
ताउम्र लग जाती है फिर,
वो मुश्क उतार देने में।

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