सबकी अपनी शिकायतें है, अपनी सबकी दास्तां है
तू भी कहले, जो कहना चाहे, उड़ा ले अपनी फाख्ता है .
इक वक्त था जब तुझसे पहले, गुमा, हक़ीक़त में फ़र्क था कुछ
नशा चढ़ा है धर्म का अब, दलील सुनता अब कोई कहां हैं
नज़र समझ है, समझ गुमा है, गुमा हकीकत मान बैठे
माल घटिया, लिबास उम्दा, पोशाक सबका नया नया है
कैमरे की कैद लुभाती हर किसी को हर जगह अब
राज दिल के कैद हो जिसमें वो कैमरा बना कहां हैं
सबने माना तुम्हीं हो सब कुछ, हमें भी कहते मान लो तुम
गर खुदा है ला वजूद तो, फिर वजूद वाला खुदा कहां हैं
सब बे चैन है, सब हैं व्याकुल, वजूद सबका बिखर रहा है
हाय तेरा करम के तूने, खबर है पर, अब खबर कहां है-
देखू चमन मे क्यूं होता नहीं बहार
बेखुदी में कुछ चींख सुनायी... read more
मुहब्बत भी मुझसे, शिक़ायत भी मुझसे
साथ देने की हर वक्त कवायद भी मुझसे
खूबसूरती पर खुद का यकीं भी नहीं और
अच्छी कैसे लगूंगी ये हिदायत भी मुझसे
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कर्म अच्छे किए तो भी स्वर्ग की अभिलाषा
व्यर्थ है क्योंकि वो तो मिलनी ही है
और कर्म बुरे हैं तो भी स्वर्ग की कामना
व्यर्थ है क्योंकि वो मिलनी तो है नहीं
फिर चाह क्यों करना
अमाल अच्छे है तो जन्नत की फ़िक्र करने की
जरूरत नहीं वो तो मिलना ही है
और अमाल दुरुस्त नहीं तो फिर जन्नत की फ़िक्र
करना बेवकूफी है,वक्त का जिया है
क्योंकि ये ही तो शर्त है जन्नत जाने का
वैसे हमें न जन्नत की चाह है
न जहन्नम का खौफ-
शिष्य*
गुरु जी क्या समाज बीमार भी होता है ?
गुरु*
हां बालक समाज ऐश्वर्य और वर्चस्व जब मानव
आचरण बन जाए तो समाज बीमार होता जाता है
शिष्य *
गुरु जी इसकी पहचान कैसे होती है ?
गुरु*
बालक जब समाज में हर वर्ग के लोगों की चार
बिंदुओं पर मानसिकता एक जैसी हो जाए तो
समझ जाना कि समाज बीमार हो चुका है
शिष्य*
गुरु जी वो चार बिंदु कौन कौन से हैं
गुरु *
बालक वो चार बिंदु निम्न लिखित हैं
1* चुनाव के समय धर्म देखना
2* पूजा या इबादत के समय आस्था या मसलक देखना
3* शादी के समय धन ऐश्वर्य और सौंदर्य देखना
4* खुद को सर्व श्रेष्ठ मानना और दूसरों से भयभीत होना
या कुंठा में लिप्त हो जाना
-
जन्नत की फ़िक्र क्यूं कर हो अमाल पहले
कुंजी तेरे ही कल्ब में छिपा रखी है किसी ने
मर्जी तेरी है तू रहे " मैं" के नशे में चूर
वरना तो तेरे हाल बता रखी है किसी ने
अमाल / अच्छे कर्म
मैं/ खुद की पूजा अर्थात खुद को ज्यादा
अहमियत देना दूसरों को कम तर समझना-
अहंकार, शक्ति के दुरुपयोग और ज़ुल्म
की इंतेहा को पर करने पर रावण का
कैसे पतन हुआ था इसका सीधा प्रसारण
21 वीं सदी में देखना हो तो तीन जगह
नज़र बनाए रखें
ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी जी की
ज़बान, कमान और वैश्विक स्तर पर
भारत के सम्मान पर नज़र गड़ाए रखे-
ज्ञान ( इल्म) का हासिल समझदारी
समझदारी इंसान में नरमी और झुकाव पैदा
करती है
और समझ का दायरा बढ़ाने के लिए हमें
आलिम, मौलवी, पंडित, विद्वान, साधु संत
मंदिर, मस्जिद,, आश्रम गुरुद्वारे, चर्च, स्कूल,
कॉलेज, यूनिवर्सिटी,इत्यादि के संगत से
गुजरना पड़ता है
लेकिन इन सारे जगहों पर समय बिताने वालों
में भी यदि नरमी, करुणा का अकाल दिखे इनमें भी
वैमनस्यता और वर्चस्व की पराकाष्ठा हो तो
फिर इंसान कहा जाए ? कहीं मत जाओ
* अपने पास आ जाओ* मत जाओ किसी के पास
खुद की पहचान करो लोगो के जिन विकारों को
देख कर तुम असंतुष्ट हो उन्हीं विकारों को खुद
में तलाश करो और उनसे संबंध विच्छेद करो
फिर किसी ग्यानि की तुम्हे जरूरत नहीं-
हमारी इबादत, भक्ति या तपस्या सिर्फ़ हमारा
उद्धार कर सकती है स्वर्ग या जन्नत ले जा
सकती है बाकी किसी का उससे भला नहीं होने
वाला है लेकिन हमारे अखलाक, व्यवहार से
हमारे साथ साथ दूसरों का भी भला हो
सकता है लिहाजा, इबादत हमारा जाति
मामला है उससे ज्यादा
ख्याल हमें अपने अखलाक का रखना चाहिए
आलिम का इल्म अखलाक से, और
जाहिल की जाहिलियत अल्फ़ाज़ से
नुमायां होता है
अजनबी-
बाप, बॉस और बाभन से ज्यादा
बुद्धिमान प्राणी इस पृथ्वी पर हो
ही नहीं सकता....
मैं नहीं कह रहा हूं ऐसा इन तीनों
की प्रवृति में पाया जाता है-