रात के अंधेरे में तलाश करता हूं खुद को, दिन की रोशनी में खो जाता हूं कहीं।
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Nothing more.
वक्त की रेत में दबे हैं अरमान कितने, जो सिर्फ आंसुओं की बारिश में उगते हैं।
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घर बनाने की उम्मीद ने घर से दूर कर दिया,
सपनों की इस चाहत ने दर से दूर कर दिया।
माँ के आँचल की ठंडक अब किसे नसीब है,
शहर की धूप ने हर शजर से दूर कर दिया।
वो मिट्टी, वो गलियाँ, वो बचपन की कहानियाँ,
कर्ज़ की ज़ंजीरों ने उस असर से दूर कर दिया।
कुछ ऐसा भागा मैं मंज़िल की ख्वाहिश में,
रास्ता याद रहा, मगर सफ़र से दूर कर दिया।
जिन रिश्तों में बसती थी रौशनी की लौ,
वक़्त की गर्द ने उन्हें नज़र से दूर कर दिया।
घर तो खड़ा है अब, ईंट-पत्थर से सजा हुआ,
पर जज़्बातों ने मुझे इस नगर से दूर कर दिया।-
ना संघर्ष ख़त्म होता है, ना ही शिकायतें,
धीरे-धीरे जो ख़त्म हो रही हैं, वो हैं उमर की सौगातें।-
अब मेरी बातों का बुरा मान लेते हैं वो, पहले कभी मेरे बातों में प्यार ढूंढा करते थे
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हर हर में छुपी होती है जीत की कहानी,
दुख के बाद ही आती है खुशियों की निशानी।-
वक़्त तो अब लफ़्ज़ों में दिया जाता है,
रूबरू तो महज दिखावा किया जाता है।-