घर बनाने की उम्मीद ने घर से दूर कर दिया,
सपनों की इस चाहत ने दर से दूर कर दिया।
माँ के आँचल की ठंडक अब किसे नसीब है,
शहर की धूप ने हर शजर से दूर कर दिया।
वो मिट्टी, वो गलियाँ, वो बचपन की कहानियाँ,
कर्ज़ की ज़ंजीरों ने उस असर से दूर कर दिया।
कुछ ऐसा भागा मैं मंज़िल की ख्वाहिश में,
रास्ता याद रहा, मगर सफ़र से दूर कर दिया।
जिन रिश्तों में बसती थी रौशनी की लौ,
वक़्त की गर्द ने उन्हें नज़र से दूर कर दिया।
घर तो खड़ा है अब, ईंट-पत्थर से सजा हुआ,
पर जज़्बातों ने मुझे इस नगर से दूर कर दिया।-
Just a Human Right now!
Nothing more.