इंशपा इलाहाबादी   (इंशपा)
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युवा लेखक व चित्रकार
Joined 1 March 2019


युवा लेखक व चित्रकार
Joined 1 March 2019

जो क़िस्मत में लिखा है अगर जब वो ही मिलता है,
तो मंदिर मस्जिदों में तू...ख़ुदा से माँगता है क्या..!

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वही इस दौर का, है सबसे बड़ा दुश्मन,
जो भी ये चाहेगा के तेरा भला हो |

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ज़रूरी नहीं
कि कोई ग़म ही हो,
कभी कभी इंसान को
उसका "अहम" भी उसे
खा जाता है l

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इससे पहले कि कोई ख़्वाब हमारा देखे,
हमे अपना बना कि दुनिया नज़ारा देखे l

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चाहे ये सफ़र मेरा सफ़र में ही गुजर जाए,
पर ख़ाली हाथ वापस, घर हम न लौटेंगे l

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सहमे हम जज़्बात से ज़्यादा,
टूटे जब हालात से ज़्यादा l

सोच समझकर ही कुछ कहना,
टूटे दिल किस बात से ज़्यादा l

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किसी को कम तो किसी को कम ज़्यादा लगे,
ये दर्द - ए - दिल है इसका ग़म ज़्यादा लगे l

इस दौर - ए - जहां में ये रिवाज है इंशपा,
यहां दवा लगे कम बेशक ज़ख़्म ज़्यादा लगे l

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मुझे लगता है
तुम सबसे अलग हो,
और काश!
ये सच हो l

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दर्द क्या होता है बख़ूबी जानने लगे हम,
जब से अपनो के चहरे पहचानने लगे हम l

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न आई रास दुनिया ना ही रहा मलाल,
यानि इस जहां से जी भर गया हमारा|

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