inner_ shine   (आर्ची)
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Joined 28 December 2019


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Joined 28 December 2019
26 JAN AT 4:33

एक पागल सी लड़की है जो तुझ पर मरती है
तेरी एक खुशी के लिए हर नामुमकिन कोशिश करती है
वैसे तो मासूम सी है फूलों की तरह
मगर बात जब तुझ पर आ जाए तो किसी से ना डरती है
एक पागल सी लड़की है जो तुझ पर मरती है
तेरी हर पसंद नापसंद का कितना ख्याल करती है
खुद से ज्यादा वो तेरा ध्यान रखती है
खुद की बड़ी से बड़ी चोट से मामूली सी लगती है पर
तेरी हल्की सी खरोच पर ना जाने कितना रोया करती है
तेरी पसंद के कपड़े पहन इतरा कर चलती है
एक पागल सी लड़की है जो तुझ पर मरती है
घर से जो निकली कभी तेरा हाथ पकड़ पुरी दुनिया घुमना चाहाती है
शादी के बंधन मे बंध तेरा नाम अपने नाम के साथ सजाना चाहती है
इतनी छोटी सी उम्र में वो कितना कमाल करती है
तेरे सिवा किसी की ना सुनती है हर वक्त अकेले बैठे तुझसे मिलने के ख्वाब बुनती है
तुझमे उसे है खुदा दिखता सबसे ये कहती फिरती है तुझे कितना पसंद वो करती है
आलसी है बहुत फिर भी तेरे लिये रंग बिरंगे कागज़ों पर तेरी तस्वीरे सजाती रहती है (craft)
एक पागल सी लड़की है जो तुझ पर मरती है

तू सोच भी नहीं सकता वो तुझे कितना प्यार करती है एक पागल सी लड़की है जो तुझ पर जान निसार करती है।

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27 AUG 2024 AT 2:23

वैसे तो मैं जानती हूं... हमारी बात नहीं होगी.. अब कभी , लेकिन ....फिर भी मन में कुछ सवाल है ...
अगर जो कभी तुम मिले... तो तुमसे पूछूंगी..
कि क्यों ?
तुम मेरी जिंदगी से जाने के बाद भी जा क्यों नहीं रहे हो ? क्यों तुम मेरे पास न होने के बाद भी ...
हर वक्त मेरे पास रहते हो।
क्यों तुम बेवजह मेरे ख्वाबों में आते हो
क्यों तुम मुझे इतना सताते हो
क्यों तुम्हारी आवाज मेरे कानों में बोलती है।
क्यों मुझे आज वो दिन रह रह कर याद आ रहा है जब कृष्ण जन्माष्टमी पर... हमने रात में साथ में कृष्ण झुलाये थे। बीच बगड मे तारो के नीचे हमने साथ मे 12 बजने का इंतजार किया था।
क्यों हमारे साथ बिताए हुए लम्हे ..मेरी आंखों के आगे आ जाते हैं
आधी रातों में तुम्हारी आवाज में मुझे अपना नाम सुनाई देता है
क्यों मुझे ऐसा लगता है कि तुम मुझे पुकार रहे हो ।
मैं जानती हूं ...तुम अपनी जिंदगी में बहुत आगे बढ़ गए हो।
फिर भी क्यों मुझे ऐसा लगता है कि...
तुम आज भी मुझ पर ही शून्य हो..
मैं अपनी जिंदगी में जितना आगे बढ़ाने की कोशिश करती हुं।
उतना ही तुम्हारा हाथ मुझे मेरे करीब आता दिखाई देता है। मैं जितना आगे चलती हूं ...
तुम्हारा हाथ पकड़ कर उतना ही रुकना चाहती हूं
आखिर क्यों तुम मेरी जिंदगी से जाकर भी जा क्यों नहीं रहे हो ?

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18 AUG 2024 AT 16:47

Read caption..
कुछ अलग लिखा है मैं जानती हूं वक्त लगेगा लेकिन पढ़िएगा जरूर ।।

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18 AUG 2024 AT 16:33

तुम्हारे जाने के बाद कुछ नहीं बदला था
रोज सुबह हुई ,रोज शाम।
सुबह को आंगन में चिड़िया मधुर गीत गुनगुनाती हुई आयी... कुछ वक्त माटी की उस कटोरी के पास ठहरकर जो मम्मी आंगन में पानी की सजा कर रखती है और दोपहर की धूप होने पर फिर से अपने घोंसले में चली गई और शाम की छांव होने पर फिर चहकने के लिए आसमान में उसने अपने पंख फैलाए।
तुम्हारे जाने के कुछ दिनों बाद तक मैं यही टटोलती रही
कि तुम्हारे जाने के बाद क्या बदला है ?
रोज रात हुई चांद भी आया।
सुबह हुई सूरज भी जगमगाया।
रोजमर्रा के दिनचर्या में भी शायद कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ था।
आसपास बहुत कुछ देखा कि क्या बदला? क्या बदला? क्या बदला?
लेकिन ....
कुछ भी ज्यादा बदला हुआ नजर ही नहीं आया।
लेकिन हां ......
एक सुबह जब आईने खुद को देखा थोड़ा गौर से देखा तो समझ आया कि आखिर .....क्या बदला..।।
जो इंसान तुम्हारे साथ था और आज जो इंसान इस आईने के सामने खड़ा था वह दोनों अलग थे।।

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18 AUG 2024 AT 15:57

कभी-कभी कुछ चीजों की जानकारी ना होना ही सुखद होता है यह बात मुझे उस वक्त पता चली जब ...
मैंने सोचा कि बचपन में जब जीवन के बारे में कुछ भी नहीं पता था तो जीवन में कितना आनंद होता था।
हर पल खुशी का था ।
लेकिन .....
उम्र के साथ जैसे-जैसे जीवन को जाना
वैसे ही इस बात को भी जान लिया कि कुछ चीजों को न जानना ही ज्यादा बेहतर होता है ।।

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17 AUG 2024 AT 23:02

मैंने लोगों को कहते सुना है
वक्त किसी के लिए नहीं रुकता
लेकिन ...
पीछे मुड़कर जब जिंदगी को देख रही हूं
तो महसूस होता है कि
जैसे पिछले इतने महीनो में कुछ बदल ही नहीं
मैं नहीं जानती वक्त रुकता है या नहीं
लेकिन हां इतना मैं जान गई हूं ....
जिंदगी कभी - कभी जरूर थम जाती है ।।

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17 AUG 2024 AT 19:59

बहुत वक्त से कुछ लिखा नहीं ...
लिखती भी कैसे?
मन में कुछ आया नहीं ।
मन में कुछ आता भी कैसे ?
बहुत वक्त हो गया ग़ालिब ...
यह दिल टूट ही नहीं ।।

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22 JUL 2024 AT 23:27

प्रकृति की मर्जी से या किसी मंदिर में बांधे गए धागे से या किसी फकीर की दुआओं से न जाने .....
कैसे मिले हो तुम मुझे,
हां... लेकिन , तुम मुझे बिल्कुल ऐसे मिले हो , जैसे.. अस्पताल में मरने वाले व्यक्ति की नब्ज टटोलकर ,
कोई वैध दे दे उसे जीने की उम्मीद।
उम्मीद ,प्यार ,विश्वास ,रोशनी सब तुम्हारे ही पर्यायवाची लगते हैं।
ना तो मुझे साहित्य का इतना ज्ञान है और ना ही हिंदी व्याकरण पर मेरी पकड़ इतनी मजबूत कि
तुम्हें पन्नों पर उकेर सकूं।
तुम्हारी खुशबू मुझे किसी नए उपन्यास के पन्नों जैसी लगने लगी है।।

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20 NOV 2022 AT 23:21

झूठ कहते हो तुम,
कि मै सिर्फ लबों से
मुस्कुराती हुँ !
शायद तुमने मेरी आंखों को
चहक कर हँसते हुए नहीं देखा !
होठों से तो सिर्फ दिखावा होता है जब खुशी होती है दिल से तो मुस्कुराया आंखों से जाता है

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20 NOV 2022 AT 23:21

जिंदगी मुसीबतों से मै ,
कभी हारी नहीं हूं !
हां थोड़ा थकी हूं , इस सफर को
चलते चलते ,
लेकिन कभी वापस नहीं लौटी हूं !!

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