रास्ता शुरू किए था अकेले, थोड़ी झिझक थी, थोड़ा डर; पर कौन जानता था, की अंजान भी अपने हो जाते हैं, बस पल भर की ही तो बात थी; जब यहां सब अंजान थे, जिंदगी भी कैसा वक्त दिखाती हैं, पल भर में ही सबको अपना बना जाती हैं; कौन कहता हैं, सब मतलबी है आज की दुनिया में, कभी हमारी महफिल में आ के तो देखो; यहां अलग ही दुनिया बस्ती हैं।।
लेखन सिर्फ शब्दों का खेल नहीं जज्बातों का भी निछोड़ हैं, कलम और कागज का मेल हैं, सोच और अनुभव का समंदर हैं , ये एक कला हैं जो शब्दों से सच दिखाता है ।।