Indu sharma   (@Indukikalam)
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कुछ इंदु की क़लम से !
Joined 15 November 2019


कुछ इंदु की क़लम से !
Joined 15 November 2019
10 MAR AT 8:36

किसको दे एहमियत ?
एक बच्चा,
जो अंतर्मन में है बसा,
जब मन चाहे,
वो ज़िद पे अड़ा है !
या,
इन बालों की सफ़ेद रंगत,
जो वक़्त बे वक़्त,
आ जाते हैं नज़र !
इनका साथ देती हैं,
चेहरे की ये,
हल्की हल्की उम्र की लकीरें !

पर मैं बताऊँ,
एक दिल की बात !
जीतता तो को ज़िद्दी बच्चा ही है !
जो अपने रंग बिरंगे रंगो से,
रंग देता है दिल का ख़ालीपन !
मौलिक@ इन्दु शर्मा

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5 MAR AT 8:11

ख्वाहिशें हज़ार...
और खुशियां कम !

मंज़िल एक ...
और राह में,
कभी हँसी,
कभी ग़म !

कभी भागते ,
और, कभी थमते हम !

लगता है कई बार ,
क्या ये एक ज़िंदगी पड़ेगी कम ?
मौलिक@इन्दु शर्मा

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4 MAR AT 7:52

भीतर हर किसी के,
चल रहा है एक द्वन्द्व !
तीव्र सा,
कभी मंद ,
पूर्णतया स्वच्छंद !

अंततः क्या हुआ ?
क्यों ?
कैसे ?
क्या क्या हो सकता था ?
अब क्या हो सकता है ?
ख्यालों सवालों का युद्ध !

और हम सब,
एक कोशिश में ...
इस अंतहीन ,
चक्रवायु को तोड़ने की !
मौलिक@इन्दु शर्मा

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27 FEB AT 8:05

एक फूल सी मैं,
एक भँवरे से तुम !
एक बहती नदी सी मैं ,
और.... किनारे से तुम !

उस गाने की ताल सी मैं,
और लय से तुम !
बताओ, फिर कैसे जुदा हैं हम ?
मौलिक@इन्दु शर्मा

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25 FEB AT 8:24

ढूंढ़ो ग़र,
मिल जाते हैं मुस्कुराने के बहाने कई ,
कभी कोई याद,
कभी कोई दोस्त,
कभी कोई जगह,
कभी एक गरम चाय की पियाली,
कभी मंद मंद बहती हवा,
कभी एक खिला गुलाब,
तो कभी बस यूँ हीं ! 😊

मौलिक@इन्दु शर्मा

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22 FEB AT 9:42

भागता हुआ वक़्त,
और हम वहीं,
ठहरे हुए!

उसी नीम के पेड़ के नीचे,
वही मुँडेर पर बैठें,
सोचते हुए ,
गुनगुनाते हुए !

भागता हुआ वक़्त,
और हम वहीं,
ठहरे हुए!
मौलिक@ इन्दु शर्मा

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18 FEB AT 9:21

एक स्विच होना चाइए,
हर काम क़ाज़ी औरत के पास !

पहले कदम घर में पड़ते ही,
दफ़्तर के बैग रखने से पहले ही,
कर लो स्विच ऑन !
माँ वाला,
पत्नी वाला,
बहू वाला,
बेटी वाला !

होते ही ये ऑन,
भूल जाओ,
दफ़्तर की खिच खिच,
पीली नीली फ़ाइले,
वो डेडलाइन,
वो मीटिंग,
क्योंकि हो गया है ये स्विच ऑन!

एक प्याली चाय से पहले ही,
रसोई करे इंतज़ार,
कर लो कुकर तैयार !
पुकारे वो कड़ाई,
और परात बार बार ,
क्योंकि हो गया है ये स्विच ऑन!

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29 JAN AT 9:25

इस शोर ए बाज़ार में,
मैं और, ये मेरी तन्हाई !

ढूँढती है,
बस,
कुछ चुनिंदा आवाज़ें !
मौलिक@इन्दु शर्मा

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7 JAN AT 10:44

कितने कदम ?
कितना चलूँ कुछ और,
की कट जाये ये रस्ता!

रस्ता ... जिसका है कहाँ अंत,
ये जानना अभी बाक़ी है !
मौलिक@इन्दु शर्मा

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7 NOV 2023 AT 16:07

दिन गुज़ार दिया ,
एक शाम के इंतज़ार में!

आई शाम,
और कमाई पूरे दिन की ले गयी !!
मौलिक@इन्दु शर्मा

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