Indu Rathee   (Nakul Rathee)
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Joined 1 March 2019


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Joined 1 March 2019
21 MAR AT 19:16

मुझे उदास रखने की तुम्हारी नाकाम हसरतें तुम्हें मुबारक,
वक़्त के साथ दिखा दी जो ये बेहूदी हरकतें तुम्हें मुबारक,
और मुझे कोई शौक़ नहीं है किसी से रंजिशें पालने का,
अगर तुम्हें शौक़ है तो फिर तुम्हारी नफ़रतें तुम्हें मुबारक।

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9 MAR AT 7:20

आज उठते ही चेहरा नसीब हुआ है मेरी माँ का मुझे
बाखुदा यकीनन ये पूरा महीना अच्छा जाएगा…….

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5 MAR AT 11:37

हर मोहब्बत का मुकम्मल हो पाना जरूरी है क्या।
इशारा देने ख़ातिर मुस्कुराना ज़रूरी है क्या॥

बिना महबूब ही सज़ा लेती हूँ शायरी को लबों पर,
शायरों के लिए महबूब गँवाना जरूरी है क्या।

इतनी ही पाक है मोहब्बत तो खुलेआम कीजिए,
यूँ घरवालों से ही बातें छुपाना ज़रूरी है क्या।

पहले तो दलीलें देते हैं लोग इश्क़ के रूहानी होने की,
फिर बाद में जिस्मानी आग बुझाना ज़रूरी है क्या।

हम ख़्यालों में मिले और ख़्यालों में बिछड़ गए,
हिज्र में सारी रात अश्क़ बहाना ज़रूरी है क्या।

कितने दरवाज़े बंद करते हैं लोग चंद बटन खोलने के लिए,
ग़र है मोहब्बत सच्ची तो कमरों पे जाना ज़रूरी है क्या।

रोते देखा है सहेलियों को रात भर ज़ालिम इश्क़ में,
“राठी” तेरा ज़ख़्मों पर नमक लगाना ज़रूरी है क्या।

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26 FEB AT 14:29

ऐसा भी नहीं कि हमारे बीच कुछ नहीं ,
हाँ मगर हमारे बीच ऐसा वैसा भी कुछ नहीं।

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11 FEB AT 22:36

हँसकर छुपा लेती हूँ माथे की शिकन आजकल….
बेवजह हँसने की भी कई वजह होती हैं….

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11 FEB AT 22:32

बिलकुल मेरी तरह हँसती हो,
यानी तुम भी दर्द छुपाती हो ना।
सब कुछ ले आती हूँ घर से,
बस एक तुम रह जाती हो माँ ॥

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7 FEB AT 14:15

था कभी मुकम्मल वो अब आधा-आधा हो गया ,
हुआ इश्क़ तो वो राजा किसी का प्यादा हो गया,
कोशिश थी कि शहद और ज़हर को बराबर रख सकूँ,
मगर वक़्त के साथ कलम में ज़हर ज़्यादा हो गया।

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7 FEB AT 13:59

ग़ैरों की बातों में आकर रिश्ते ख़त्म नहीं करते,
मोहब्बत के तड़पाए, मोहब्बत कम नहीं करते।

साथ जीने मरने की क़समे खाई थी तुमने,
हम हो गए जुदा , तुम क्यों नहीं मरते ?

सच्चे आशिक़ भी जिस्मानी मोहब्बत करते हैं,
मगर करने को करते हैं, कहने को नहीं करते।

गंद मचा रखा था सरेआम इश्क़ के सौदागरों ने,
इल्जाम हमपर लगा कि तुम आँखें बंद नहीं करते।

करे कोई इज़हार-ए-मोहब्बत तो कहके टाल देती हूँ ,
कि पहली “उसे” रास न आई , दुबारा हम नहीं करते।

ग़र है शक अभी तक “इंदु” के किसी ग़ैर का होने पर,
तो सुनों…, ख़ानदानी घरों के बच्चे खसम नहीं करते।

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31 JAN AT 14:31

अपनों से दूर , ग़ैरों का ग़ुरूर सहने के लिए,
मैं पड़ी हूँ पहाड़ों में खुद को मशहूर कहने के लिए,
आज फिर महीने की आख़री तारीख़ है माँ,
आज फिर रिश्वत मिली है तुमसे दूर रहने के लिए ।

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1 JAN AT 11:08

ज़माने ने कल रूखसत किया उसको काफ़ी ज़लालत के साथ,
फिर भी ख़ुशियाँ बाँट गई सब में वो इसी हालत के साथ,
बहुत क़रीब आकर बिछड़ जाने का दर्द वो जाते जाते बता गई,
कल पूरी रात बिताई है मैंने दिसंबर की आख़िरी रात के साथ ।

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