इन्दु प्रकाश द्विवेदी   (इन्दु)
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लखनवी
Joined 23 September 2021


लखनवी
Joined 23 September 2021



कुछ बातें बेहद पेचीदा होती हैं।
कुछ बातें दिल में पोशीदा होती हैं।
हंसी-हंसी में कहना पड़ता है उनको
कुछ बातें इतनी संजीदा होती हैं।


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थोड़ा क़ाबू ज़ुबान पर रखना।
तीर अपना कमान में रखना।
राहु-केतु बदल रहे गोचर,
उनकी फ़ितरत को ध्यान में रखना।

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तुम्हें आता नहीं इमदाद करना।
हमें आता नहीं फ़रियाद करना।

तुम्हें हक़ है जियो तुम, जैसे चाहो,
मगर हक़  दूसरों के याद रखना।

ये माना होशमन्दी है ज़रूरी,
मगर दर मैक़दे का याद रखना।

बुनावट सीख लो रिश्तों की तुम,फिर 
किसी के साथ घर आबाद करना।

कभी तहज़ीब का दामन न छूटे,
ख़यालों को भले आज़ाद रखना।

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ज़ँजीरों में        जीने की है आदत हमको।
खुली हवा से  जाने क्यों है वहशत हमको।
अंधियारों के हम इतने आदी        हो बैठे,
उजियारों से अब होती है दहशत   हमको।

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पास है कोई, न कोई दूर है।
किस लिए फिर दिल तेरा रंजूर है।

धूप है तो छांव का अहसास है,
ज़िन्दगी का बस यही दस्तूर है।

किसके हिस्से में यहां केवल खुशी,
क्या अकेला तू ग़मों से चूर है।

प्यार से दो बात भी ना कर सके,
इतना क्या होता कोई मग़रूर है।

रंज़िशें पलती हैं ग़र दिल में तेरे,
एक दिन बनना इन्हें नासूर है।

दोस्तों से प्यारा है दुश्मन मेरा,
जो निभाता दुश्मनी भरपूर है।

पत्थरों के शहर में शीशे सा दिल,
इसको तो होना ही चकनाचूर है।






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हुए बरसों चले आये शहर।
मगर दिल में बसा है गांव- घर।

जहां होती कभी थीं रौनक़ें,
हुए जाते हैं वो घर खंडहर।

जड़ों को छोड़कर आये यहां,
हम अपनी ख़्वाहिशों से हार कर।

ये कैसी ज़िन्दगी हम जी रहे,
जिये जाते हैं ख़ुद को मार कर।

यहां मुस्कान बस होठों पे है
दिलों में है भरा कितना ज़हर।

जिसे देखो वो भागा जा रहा,
हुआ मिलना-मिलाना मुख़्तसर।

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ज़िन्दगी इतनी मुख़्तसर नहीं है।
हमको ही जीने का हुनर नहीं है।

पेट भरने को कम नहीं है यहां,
पर किसी को यहां सबर नहीं है।

रूह से जो नहीं निकलती है
उस दुआ में कोई असर नहीं है।

हमसफ़र जाके अब मिले हैं मुझे
जब मुझे हसरत ए सफ़र नहीं है।

ये ख़रीदारी तो बस नगद की है,
दिल का सौदा है किश्त पर नहीं है




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कौन है दुनियां में बोलो ख़ामियां किसमें नहीं । 
राह ऐसी कौन है कठिनाइयां जिसमें नहीं। 

कौन सा मौसम है ऐसा जो सभी को रास आये, 
कौन सुख है दर्द की परछाइयां जिसमें नहीं ।

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जो मिलता दिल से उसके दिल नहीं है। 
तेरी सोहबत के वो क़ाबिल   नहीं है।

न समझे  क्या वफ़ा है क्या जफ़ा है,
कोई इतना भी अब जाहिल नहीं है।

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तू वो लिख जो सच जीवन का।
तू दुःख लिख हर शोषित मन का।

मत लिख जो लिखवाया जाये,
लिख जो बने सम्बल जन-जन का।

शहरों का कोलाहल लिख तू,
लिख तू सूनापन आंगन का।

करुणा के कुछ गीत भी लिखना,
वीरानापन लिख उपवन का।

सत्ता धनपशुओं के हाथों,
लिख अहवाल तू जन गण मन का।

वक़्त की मार बड़ी क़ातिल है,
लिख हिसाब देना क्षण क्षण का।

शब्द खोखले हुए पड़े हैं,
लिख उपचार ज़रा कवि मन का।

- इन्दु प्रकाश द्विवेदी

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