कर भले और कुछ कमी मालिक।
ज़ीस्त हो प्यार से भरी मालिक।
उम्र लंबी नहीं दरकार मुझे,
दे मगर ज़िन्दगी बड़ी मालिक।
रात को नींद सुकूँ वाली दे,
दोपहर हो भले कड़ी मालिक।
तेरी जन्नत तुझे मुबारक हो,
हमको बेहतर है ये ज़मीं मालिक।
क्या वो दौलत भुला दे जो रिश्ते,
इससे अच्छी है मुफ़्लिसी मालिक।
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छोड़िये भी जली-कटी बातें।
कीजिये कुछ भली-भली बातें।
बोलिये सच मगर सलीक़े से,
कीजिये क्यों ये दिल-जली बातें।
वो भी क्या दिन थे लोग कैसे थे,
उनकी मिश्री में वो घुली बातें ।
अपने किरदार से महकते लोग,
हमसे करते थे संदली बातें।
दौर बदले, बदल गये लहजे,
खो गईं अब वो मख़मली बातें।
बात करने से बात बनती है,
बात बिगड़ी, अगर टली बातें।
बात रिश्ते निभाने की हो अगर,
करनी पड़ती हैं अनसुनी बातें।
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ऐसा नहीं कि ज़िक्र ही उनका नहीं किया।
वो जैसा चाहते थे बस वैसा नहीं किया।
था हुक्म उनकी शान में लिक्खें क़सीदे हम,
पर शायरी को हमने यूँ रुसवा नहीं किया।
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ख़ुद-गुमानी ख़तम नहीं होती।
लंतरानी ख़तम नहीं होती।
ख़त्म सब हो गया सियासत में,
बदज़ुबानी ख़तम नहीं होती।
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प्यास आंखों में ग़म सीने से लगा रखा है।
हमने हर चीज़ क़रीने से लगा रखा है ।।
जाने कब कौन कहाँ मेरे काम आ जाये।
घर के हर ताक़ पे इक बुत को सजा रखा है।
'नादान '-
गले हमसे बेशक मिले जा रहे हैं।
मगर दिल ही दिल में जले जा रहे हैं।
न आना है बस में, न जाना ही बस में,
चले आ रहे हैं, चले जा रहे हैं।
न रहबर है कोई न मंज़िल पता है,
न जाने किधर क़ाफ़िले जा रहे हैं।
फिसलती गई रेत सी ज़िन्दगी ये,
हम हाथों को अपने मले जा रहे हैं।
ये अफ़सुर्दगी क्यों दिलों में समाई,
न क्यों आपसी मसअले जा रहे हैं।
यही होता आया ज़माने में कब से,
जो हैं सादा दिल वो छले जा रहे हैं।
ग़रीबों की ग़ुर्बत बढ़ी जा रही है,
रईस और फूले-फले जा रहे हैं।-
हम भी नाराज़ हैं क़तरा होकर।
वो भी कुछ ख़ुश नहीं दरया होकर।
कट गये वो ज़मीं से भी अपनी,
क्या मिला उनको आसमां होकर।
दर्ज़ हैं आज गुमशुदाओं में,
कल जो आये थे रहनुमा होकर।
काम अपना अँधेरे करते रहे,
रौशनी हमने की दिया होकर।
दिल की जानिब से राह सीधी थी।
आप आये कहाँ कहाँ होकर।
नौकरी कर रहे हैं उनकी सो,
सुन रहे हैं उन्हें बहरा होकर।-
ग़मों से कब न जाने चूर कर दे।
वो दिल खुशियों से कब भरपूर कर दे।
रखा जिसने तुम्हें गुमनाम अब तक,
न जाने कब तुम्हें मशहूर कर दे।
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भारत की है शान तिरंगा।
ईश्वर का वरदान तिरंगा।
पुरखों के बलिदान से सींचा,
हम सबका अभिमान तिरंगा।
चीर गुलामी के अंधेरे,
निकला ये दिनमान तिरंगा।
हर हिंदुस्तानी की ज़ुबान पर,
देश का गौरव-गान तिरंगा।
शौर्य, शांति, उन्नति, उर्वरता,
भारत की पहचान तिरंगा।
सब कुछ न्योछावर कर देंगे,
रखेंगे हम मान तिरंगा।
दुश्मन तुझसे थर-थर कांपे,
तू है अज़ीमुश्शान तिरंगा।
बड़े-बड़े सुल्तानों का भी,
है अपना सुल्तान तिरंगा।
हर मज़हब हर जाति से ऊपर,
अपना दीन -ईमान तिरंगा।
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जीवन एक अहसास है उठती-गिरती सांसों का।
भले-बुरे वक़्तों का, पतझर का, मधुमासों का।
झूठे-सच्चे रिश्तों का, खुशियों, संत्रासों का,
भावों और अभावों में बिखरे इतिहासों का।-