Ajeeb sa safar hai ye Zindagi…
Manzil milti hai maut ke baad…!!-
रहता है सिर्फ़….एक ही कमरे में आदमी…
उसका ग़ुरूर रहता है बाक़ी मकान में..!!-
Tere mere Khwab kaha mil sakte hai..!
Tune raat aur maine Umra guzaari hai..!!-
मुझे ना बताइये इश्क़ की तहज़ीब..!
मैंने उम्र भर बस उसे दूर से देखा है…!!-
महँगा जूता अक्सर वहीं खरीदते हैं..!
जिसके भाग्य में चलना कम लिखा होता है…!!-
कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है
वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है
इक ज़रा हाथ बढ़ा दें तो पकड़ लें दामन
उन के सीने में समा जाए हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत है तो फिर फ़ासला इतना क्यूँ है
दिल-ए-बर्बाद से निकला नहीं अब तक कोई
इस लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यूँ है
तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यूँ है
कैफ़ी आज़मी-