इंद्रधनुष प्रकाशन   (लLIT meghwanshi✍)
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Joined 9 August 2020


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Joined 9 August 2020

तेरी मायूसी को
खुद मेँ समेटने आया हूँ
तेरी क्षुब्ध पड़ी
रूह को रंगने आया हूँ
तू विश्वास की डगर पर
थाम ले मेरे हाथ
मैं तुझे दुर्गम को पार
करवाने आया हूँ

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तेरे बाद भी तेरा अहसास मेरे साथ रहेगा,जो गुजारा हैँ वक्त तेरी शाख सी बाहों मेँ
लम्हा दर लम्हा धड़कनो मेँ आबाद रहेगा,उधेड़ना कभी रूह की परतें तेरा ही नाम रहेगा

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दबी सी सांसे मेरी
अदबी सी मेँ सांवली
उस होनहार के लिए
हुयी थीं मैं बावली
सादगी सा स्वभाव
खटकता हैँ अभाव
तू आयेगा कब तलक
तड़प रही मनभावनी

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तुम्हारे होंठ मालाबार तट से हैँ
जो पहली बारिश यही कराते हैँ
रेशमी केश टकराकर लब्बो से
फिर सदाबहार नग्मे सुनाते हैँ

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चुरा कर शीशे सा दिल निगाहों पर पहरा लगा रखा है
तेरी एक इंच मुस्कान ने दीवाना बना रखा
मगर बेचैन कर रहा है तेरा खामोशी भरा चेहरा
जरा बताना मेरी दिलनशी क्या दर्द तूने छुपा रखा है

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ज्वार भाटा सी आती हो
तुम मेरे अंतरंग में
विद्युत उत्पन्न कर देती हो
तुम मेरे तन मन में

तेरे होंठ मालाबार तट से हैँ
जो पहली बारिश कराते हैँ

आबनूस सी खिल जाती तुम
फिर सदाबहार वन में

सृसर्प सा रेंगने लगता हूँ मैं
तब तेरे पश्चिमी दल दल में

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तेरी मुस्कान के खातिर
वो अपने गुम छुपा लेती हैँ
कोई समझता नहीं उसे
फिर भी मुस्कुरा देती हैँ

खुद में नहीं रही अब वो
तुझमें सुकून से जी लेती हैँ
सदाबहार सादगी में वो
कल की ताजगी देती हैँ

उसके अरमानों में सिर्फ तू
और तेरा बेहतर कल हैँ
वो तब तक तेरे साथ हैँ
जब तक साँसो में हलचल हैँ

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तेरे भूमध्य सागर दिल से
प्रेम रूपी जैटधाराए बहने लगी
कही भी अड़चन ना आयी
जब वो केस्पियन, काला सागर से गुजरी
वो भी सागर से रो रहे थे
उनके आँखों की नमी तूने खुद में समेटी
तेरे इस प्रभाव से पश्चिमी विक्षोभ
सी घटना घटी
मेरे कठोर हिमालय ह्रदय से टकराव हुआ
फिर बेमौसम आँखो से बरसात हुयी
कहने लगे सब मावठ हुआ
तुम क्या जानो क्या मुझपर बीती
दिल ए वादियों सी फ़सल खराब होगयी
जिसका मुआवजा तक नहीं मिला
बेमौषम प्रेम करने का यही था सिला l




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❤ तुम मेरे दिल की भूगोल ❤

मुझे वहम था मैं ऊंचा हूँ
8848 मीटर
माउंट एवरेस्ट कि तरह
उसने आँखों में डुबो दिया मुझे
11022 मीटर
मेरियाना गर्त कि तरह

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छत से निहार रही थी उसे
दिसम्बर की तरह जाते हुए

कई लोग मशवरा देने आये
जो थक गए समझाते हुए

कुँवारी थी मैं फिर भी लगा
वो इश्क नहीं सुहाग चला गया

रोज खनकने वाली चूड़ियाँ आज खामोश थीl
उसने फिर याद दिला दी
दिसम्बर कि तरह मेरे घर के सामने आ के l


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