इंद्रधनुष प्रकाशन   (काव्य लोक)
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Joined 9 August 2020


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अचानक मिले थे हम तुम
सावन की बरसात में
ऊंचा था देवी का मंदिर
बैठे हम तुम साथ में
लज्जा का श्रृंगार घना था
सरल सादगी सा व्यवहार था
लफ्ज़ो में बयां ना कर पाए
पहली मुलाक़ात में शुमार था
तुम्हारी सादगी ने मोह लिया
मुझे क्षण भर में
एक विद्युत तरंग जगी
मेरे अंतरंग में

- ललित

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तेरी मायूसी को
खुद मेँ समेटने आया हूँ
तेरी क्षुब्ध पड़ी
रूह को रंगने आया हूँ
तू विश्वास की डगर पर
थाम ले मेरे हाथ
मैं तुझे दुर्गम को पार
करवाने आया हूँ

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तेरे बाद भी तेरा अहसास मेरे साथ रहेगा,जो गुजारा हैँ वक्त तेरी शाख सी बाहों मेँ
लम्हा दर लम्हा धड़कनो मेँ आबाद रहेगा,उधेड़ना कभी रूह की परतें तेरा ही नाम रहेगा

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दबी सी सांसे मेरी
अदबी सी मेँ सांवली
उस होनहार के लिए
हुयी थीं मैं बावली
सादगी सा स्वभाव
खटकता हैँ अभाव
तू आयेगा कब तलक
तड़प रही मनभावनी

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ज्वार भाटा सी आती हो
तुम मेरे अंतरंग में
विद्युत उत्पन्न कर देती हो
तुम मेरे तन मन में

तेरे होंठ मालाबार तट से हैँ
जो पहली बारिश कराते हैँ

आबनूस सी खिल जाती तुम
फिर सदाबहार वन में

सृसर्प सा रेंगने लगता हूँ मैं
तब तेरे पश्चिमी दल दल में

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तुम्हारे होंठ मालाबार तट से हैँ
जो पहली बारिश यही कराते हैँ
रेशमी केश टकराकर लब्बो से
फिर सदाबहार नग्मे सुनाते हैँ

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बेशकीमती दिल की तस्करी करने वाली
हमारे दायरे ने तुझे सजा देने से रोका था
गुजार दिए किमती लम्हें तेरे इंतजार मेँ
मगर आज समझा मोहब्बत नहीं धोखा था

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𝗚𝗼𝗼𝗱 𝗠𝗼𝗿𝗻𝗶𝗻𝗴

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गर इनायत हो खुदा की मेरे ए दोस्त
तो महोब्बत रुहानियत भी हुआ करती है

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कान्हा की अनुराग कृपा का विस्तार हो जाये
काश किसी शायर को हमसे प्यार हो जीये

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