ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
- जाँ निसार अख़्तर-
मेरे मन की उपज है,
मेरे मन का कौतूहल है।
ना मैं कोई लेखक हूं, ना कोई पत्रकार,
जो मन में आता है, उन्हें ही अल्फ़ाज़ में लिख देता हूं।
जो लेख लिखता हूं कौन पढ़ रहा है, कौन नहीं पढ़ रहा इस पर विचार नहीं करता हूं।
विचार तो सिर्फ इस पर करता हूं
उसमें कितना भाव छुपा है।
क्या लेख लिखा हूं? क्या तात्पर्य है?
सिर्फ इस विचार पर मेरी दौड़ रहती है।
मेरे मन की उपज है,
मेरे मन का कौतूहल है।
कितना अच्छा लिख पाया हूं
कितना अच्छा लिख पाऊंगा।
मेरे मन की उपज है,
मेरे मन का कौतूहल है।
क्या देखता हूं? क्या समझता हूं?
उस पर प्रयास करता हूं की कुछ लिख पांऊ।
देर सही पर सीख रहा हूं
एक अच्छा लेख लिखने का,
जुटा हूं मैं कोशिश में एक प्रयास में लेख लिखने को।
सब मेरे मन की उपज है,
मेरे मन का कौतूहल है।-
स्त्री को बिना शर्त के प्रेम किया जाता है, लेकिन एक पुरुष को तभी प्रेम किया जाता है जब वह समाज मे अपना वजूद तय करे। अर्थशास्त्र हमेशा प्रेमशास्त्र पर भारी पड़ा है।
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प्रेम अकेला रसायन है, जिसमें अहंकार गलता है और पिघलता है और बह जाता है। जहां ईष्या है, वहां प्रेम संभव नहीं है। जहां प्रेम है, वहां ईष्या संभव नहीं है। प्रेम निरंतर प्रतीक्षा करता है ! प्रेम एक प्रतीक्षा है, एक अवेटिंग है। प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है।
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जितने के लिए पहले लड़ना पड़ता, गिरना पड़ता, सम्हालना पड़ता फिर जीत का आनंद लिया जाता है।
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प्रेम नहीं बीतता
वक्त के साथ,
वक्त तेज़ी से
बीत जाता है
प्रेम के साथ।
- अनुश्री-
21 दिन है मेरे पास
घर पर रहूंगा
घर में ही रहूंगा
घर में रहना है
घर में रहूंगा-